पेंशनरों को इस फैसले पर थाली पीटने की जरूरत नहीं !

दोनों सरकारें पेंशनरों  का शोषण कर रही है।परंतु मध्यप्रदेश की सरकार ने तो वर्तमान कर्मचारियों एवं पेंशनरों में भेदभाव कर दिया है।छत्तीसगढ़ सरकार ने कर्मचारियों एवं पेंशनरों मैं समानता रखी है।हालांकि शोषण वह कर रही है।

अगर धारा 49 का बहाना नहीं होता तो मध्यप्रदेश के पेंशनरों को मध्यप्रदेश के नियमित कर्मचारियों को मिल रहे 31% डीए के बराबर डीआर मिल रही होती। सहमति के नाम पर हाथ फैलाना और पेंशनरों का नुकसान कर टुकड़ा देने का प्रयास हैं ( इस प्रकार शासन का भी धन बच जाता है। पेंशनरों को इस फैसले पर थाली पीटने की जरूरत नहीं। कुठाराघात है यह पेंशनरों की आशाओं पर अब हमारी सरकार इस लकीर पर चलकर पेंशनरों को फकीर बना देगी और फिर अंधभक्त, धन्यवाद देंगे। तोहफा कहेंगे। टोपी पहना दी वह नहीं कहेंगे।

छत्तीसगढ़ की मेहरबानी कब तक हमारे प्रदेश में बुलाऐंगे। जब राज्य अलग हैं तो अपने पेंशनरों के हित में

निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र क्यों नहीं। इससे सरकार का भी तो अपमान होता हैं। बार-बार सहमति के लिए

मुंह उठाकर उनकी ओर देखना पड़ता है।

सबसे अधिक दोष धारा 49 बनाकर इसे पेंशनर विरोधी हथियार के रूप में प्रयोग किया जा रहा हैं और नुकसान

पेंशनरों का हो रहा है। यह धारा पेंशनरों की दुश्मन बनी हुई है। इसके लिए मध्यप्रदेश सरकार ने समुचित दबाव नहीं बनाया है। सब धारा 49 हटाने के लिए सरकार पर फोकस करें व इसके लिए दबाव बनाये। अगर यह नहीं हो रहा हैं। तो यह कमजोरी हैं.सभी नेतृत्वधारियों के प्रयास में कमी हैं और सरकार की पहल में कमजोरी हैं, मंदमंद प्रयास की वजह से धारा 49 नहीं हट पा रही है तथा सरकार को फिर अपने पेंशनरों के आगे अपमानित सा महसूस करना पड़ रहा है। सिर्फ और सिर्फ धारा 49 को नहीं हटा पाने के कारण। अत: धारा 49 जड़ हैं.और इस जड़ को ही काटना हैं। अब देखें छत्तीसगढ़ के नियमित के डीए के बराबर पेंशनरों की राहत हो जायेगी।

लेकिन यदि मध्यप्रदेश सरकार भी छग का अनुकरण करेगी तो  तब भी मध्यप्रदेश के नियमित कर्मचारियों जिनको 31% डीए मिल रहा हैं उनके बराबर पेंशनरों की डीआर नहीं मिलेगी और वे 9% कम डीआर लेंगे, मतलब  ये 5% सहमति वाली वृद्धि मिलने पर भी यहां नियमित 31% की तुलना में मात्र 22% ही मिलेगा यह साफ बहुत बड़ा नुकसान और नाइंसाफी, नियमित और पेंशनरों में भेदभाव की होगी और फिर अगला चुनाव का इंतजार करेंगे।

संघर्ष करना होगा पेंशनरों व नेतृत्वधारियों को और मध्यप्रदेश की सरकार को चाहिए यह भेदभाव दूर कर स्वतंत्र निर्णय लें, यह अगर रोड़ा हैं तो इसे हटाने की जिम्मेदारी भी मध्यप्रदेश सरकार की है। क्योंकि, 49 धारा हटाने के लिए दबाव बनाने का काम अब सारे पेंशनर्स हितैषी संगठन, मिलकर करेंगे, यह संकल्प धारण कर चुके हैं !

छत्तीसगढ़ सरकार का पत्र 13 जुलाई 2022 के पेरा 2 पर खुद लिखा है की पूर्व मध्यप्रदेश अर्थात 30.10.2000 के पूर्व जो रिटायर हुए हैं, उनके लिए 5% महंगाई राहत हेतु सहमत हैं। वो कर्मचारी एकीकृत मध्यप्रदेश के कहलाते हैं, 1.11.2000 के बाद रिटायर हुए कर्मचारियों को उत्तरवर्ती मध्यप्रदेश कहा जाता है।

दिनांक 1.11.2000 के बाद रिटायर हुए लोगों पर विभाजन की कोई भी धारा लागू नहीं होती है।

सरकार कानून और विधि के विशेषज्ञों से सलाह क्यों नहीं लेती हैं। 

 यह निष्कर्ष अपने आधार पर लिखा है, हो सकता है.....

उक्त प्रकरण से स्पष्ट है कि चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों को ही सरकारी कर्मचारियों एवं पेंशनरों से अब कोई मतलब नहीं रह गया वह सिर्फ अपने मतलब की बात करते हैं।

मदन वर्मा " माणिक "

इंदौर, मध्यप्रदेश

ईमेल- vmadan2525@gmail.com