छांव की दरकार

ग्रीष्म का आतप कठिन है, 

छांव की दरकार प्यारी |

पेड़-पौधे काटने की जिद पर 

मिले कैसे छांव प्यारी? 

फल का प्राकृतिक स्वाद, 

अब दुष्कर सा हो गया है|

कृत्रिम हवा में श्वास लेना, 

है कहाँ की समझदारी? 

बारिश की रिमझिम बूंदें, 

तन-मन को हर्षाती हैं|

बृक्षों की सघनता हमें ,

अति बृष्टि से बचाती हैं|

सुंदर,सुघर ,सुवासित हो घर 

महक उठे क्यारी-क्यारी|

स्वप्न सरीखा नहीं लगेगा,जब

पुष्प गुच्छ से भरी हो फुलवारी|

राही गर्मी से व्याकुल होकर 

छाया पाकर सुस्ताता है|

शीतल मन्द बयार में जी भर, 

तन का ताप मिटाता है|

फूल-फल,ईधन,औषधि देता, 

सब नि:शुल्क और हितकारी|

फिर पेड़ काटने की जिद पर, 

क्यों अड़ी है ये दुनिया सारी|

अनुपम चतुर्वेदी, सन्त कबीर नगर ,उ०प्र०