खूबसूरत

खूबसूरत नारी

कल मैं चंचल नदिया सी बहती,

आज शांत जरा सी हो गई।

घर की जिम्मेदारी संभालते,

आज कहीं खो सी गई।

आईने में जो देखा खुद को,

पूछ बैठी बता दो जरा,

कैसी दिखती हूं आज?

कुछ देर उसने मुझको देखा,

फिर हंसा थोड़ा रुका,

कुछ मुस्कुरा कर बोला!

जिम्मेदारियों की मस्तिष्क पर,

चिंता साफ नजर आती है।

अपनों की चिंता तुझे बहुत भाती है।

फिक्र  में अपनों की,

कई रात तू सोई नहीं।

डार्क सर्कल आंखों के नीचे,

कजरा भी लगाई नहीं।

कानो में तेरे  बाली नहीं

होठों पर तेरे लाली नहीं।

चल छोड़ कोई बात नहीं

बात सुनने का हुनर तुझे आ गया है।

लोगों को अपना बनाना भा गया है।

माना हाथ तेरे खुददुरे हो गए

नाखून भी अब बेरंग हो गए।

खाने का स्वाद तेरे बढ़ता गया

लोगों के दिल में बसता गया।

माना अब तू पहले जैसी कमसीन नहीं,

वजन तेरा थोड़ा बड़ा सा गया।

तूने वक्त के साथ समझौता सीख लिया,

घुटने तेरे अब दुखने लगे हैं।

चलने में थोड़ी दिक्कत सी लगने लगी है।

घर की दौड़ लगाने का काम तो तेरा ही है।

नारी तू कल भी खूबसूरत थी ,

आज भी खूबसूरत है।

दिलों पर राज करने वाली,

प्यार से सब को अपना बनाने वाली।

एक तू ही तो है जो ,

सब जिम्मेदारी निभा जाती हैऋ

कभी मां, कभी बहन ,

कभी पत्नी बन सबको गले लगा जाती है।

      रचनाकार ✍️

      मधु अरोरा