"माँ तुझे, मैं क्या लिखूं"

मेरा हौसला लिखूं....

या मेरा जुनून लिखूं....

तूँ ही बता माँ तुझे 

मेरी उम्मीद लिखूं....

या मेरी आशा लिखूं....


अपनी गोद में सुला कर 

अपने आँचल का आसमां 

मुझ पर ओढाया है....

बुरी नज़र से बचाने के लिए 

तूने हर दिन काला टिका मुझे लगाया है....


मेरा सुकून लिखूं....

या मेरा जज्बा लिखूं....

तूँ ही बता माँ तुझे 

मेरा अभिमान लिखूं....

या मेरा स्वाभिमान लिखूं....


सूरज की किरणों को भी 

तूँ ही तो रोज- सवेरे- सवेरे जगाती है....

कर्तव्य अपने सारे निभा कर

रातों को भी तो तूँ ही सुलाती है....


उगती हुई सूर्य की किरण लिखूं....

या जागती हुई रात लिखूं....

तूँ ही बता माँ तुझे क्या लिखूं....

नीला गगन लिखूं या हरी वसुंधरा लिखूं....


मेरे दिल की धड़कन 

का बस यहीं कहना है....

तुम्हारी छाया में ही 

मुझे हर दम रहना है....


मेरी खुशियाँ लिखूं....

या मेरा अस्तित्व लिखूं....

मेरी पहचान लिखूं या 

मेरी दुनिया लिखूं...


किन शब्दों में, 

मैं तुम्हारा वर्णन, 

विस्तार लिखूं....

तूँ ही बता माँ क्या कोई शब्द बना है 

जो तेरी तारीफ़ में लिखूं....


        कुमारी आरती सुधाकर सिरसाट

        बुरहानपुर मध्यप्रदेश