"हां मैं गंगा बोल रही हूं"

भागीरथ ने मुझे पुकारा

सगर पुत्रों को मैंने तारा

शिवजी की अलकों से उतरी

मेरे जल की निर्मल धारा


पर धरती पर आकर मैं

अपना अस्तित्व टटोल रही हूं

"हां मैं गंगा बोल रही हूं"


मां कह करके मुझे पुकारे

वंदन करता सांझ सकारे

चंदन अक्षत पुष्प चढ़ाकर

दीप जला आरती उतारे


लेकिन तेरे कुटिल कर्म को

पुण्य तुला से तौल रही हूं

"हां मैं गंगा बोल रही हूं"


कब तक तुझे सहारा दूंगी

कब तक तुझे किनारा दूंगी

मृतप्रायी लोगों को कब तक

सलिल सुधा सम धारा दूंगी


 तेरे पापों की गठरी

निर्मल लहरों में खोल रही हूं

"हां मैं गंगा बोल रही हूं"


रश्मि मिश्र "रश्मि"

भोपाल