"पिता के लिए चंद शब्द"

आज कल फैशन बन गया है खास दिवस मनाने का तो 20 जून को पिता दिवस भी खूब मनाया जाआएगा, बहुत कुछ लिखा जाएगा पर पिता वो शख़्सीयत है जिसको शब्दों में ढ़ालना मुमकिन ही नहीं। एक दिन पर्याप्त नहीं पिता के प्रति भावना जताने के लिए, प्रति दिन पैर धोकर पिएं फिर भी ॠण न चुका पाएंगे पिता का।

शब्द घट उपकरण है भावों को प्रदर्शित करने का पर कभी-कभी उपकरण पर्याप्त नहीं होते भावनाओं को पूर्णतः दर्शाने के लिए, किसी भी बच्चे की औकात ही नहीं पिता को शब्दों में ढ़ालने की, माँ धुरी है पर पिता नींव है जिसके काँधे पर इमारत खड़ी है पूरे परिवार की। महसूस किया है कभी पिता के गीले गिलाफ़ को किसीने ? 

ना... आँखों की नमी को पीने का हुनर बखूबी जानते है पिता, सबको सांत्वना देता हुआ वो इंसान खुद भीतर से मलबा होता है। अपने शौक़ के कतरों को दफ़न करके ज़िंदगी की बिसात से सबके लिए खुशियों के गौहर चुनता है।

बेटे के लिए सागर है पिता अपना भविष्य बैठे की आँखों में देखते है। बेटे को हर सुविधा से नवाजते पाई-पाई खर्च कर देते है, तो बेटी के लिए पूरा आसमान है पिता बेटी के दामन में अपनी औकात से एक कदम आगे बढ़कर जीवन की सारी खुशियाँ भर देते है।

सुबह से शाम तक परिवार की परवाह में झुलसते पसीजते है पिता, हाथों के छाले और पैरों की जलन छुपाते परिवार में हंसी बाँटते है। लिखने वालों ने कितना कुछ है लिखा औरत, बेटी, अहसास,प्यार कायनात के हर जर्रे पर बेशुमार लिखा है, पर क्यूँ सबने एक शख़्सीयत को अनदेखा किया 'पिता को'

एक पिता कि ज़िंदगी का सफ़र आसान नहीं, किशोरावस्था से ही खुद को तराशता है ज़िन्दगी के हर एक संघर्ष और चुनौतियों का सामना करने के लिए। 

परिवार के स्तंभ को परिभाषित करते पिता को शब्दों में ढ़ालना आसान नहीं,

हर एक के प्रति नर्मी ओर तहेज़िब का लहजा समेटे गोरववंत गरिमा को पेश करते है, परिवार को अपनी परवाज़ में समेटे हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाते ज़िन्दगी की चुनौतियों को सीने पे जेलते 

अपना कर्तव्य निभाए जाते है पिता...!

दिल में खुद के जीवन से जुड़ी हर औरत का पूरा सन्मान लिये, उसे पूरी इमानदारी से हिम्मत और आत्मविश्वास से रक्षता है, पत्नी और बेटी को विश्वास दिलाता है उसके होते कोई परेशानी छू न पाएँगी तुम्हें, पिता जो समझता है की औरत भी इंसान है वो दिलाता है अहसास पत्नी की हथेलियों को अपने मजबूत हाथ में लेकर की हाँ में तुम्हारा दोस्त हूँ, हमदर्द हूँ ,हमनवाज़ हूँ, और बच्चों के राहबर बन हर मोड़ पर अपना साथ देते खड़े होते है पिता।

एक ही बिस्तर पर पास-पास सो रहे दो शरीरों के साँसों की आवाज़ तक सुनाई देती है इतने करीब होते है पति-पत्नी, पर ज़िंदगी की उलझनों से घिरे पुरुष के भीतरी धमासान का शोर वह भूले से भी नहीं जताता अपनी अर्धांगिनी को,

मैंने कभी किसी पुरुष का तकिया गीला नहीं देखा पूरे परिवार की अस्क्यामत को खुद के कँधों पर लादे देते है एक सुख संपन्न भरा जीवन सबको।

एक पिता ही है पूरी सृष्टि में सहनशीलता का प्रतिक जो कभी संघर्ष से ड़गमगाता है तब अपने पर्याय सी स्त्री के कँधे पर सर रखकर अश्कों की नमी को पीते जताता भी है की हाँ मैं अधूरा हूँ तुम बिन, सलाम है ऐसे धैर्यवान,हिम्मतवान,शौर्यवान पिता के जज़बे को..!

पुरुष के वात्सल्य का झरना एक बार ही आँखों में सैलाब लाता है, बेटी को ससुराल विदा करते वक्त आस-पास की भीड़ को भूलकर फूट-फूट कर रोने में उसे कोई शर्म नहीं, तभी तो हर बेटी का हीरो उसके पापा होते है, बेटी पिता की जान होती है बिटिया की आँख से बहती एक बूँद बाप को सौ मौत मार देती है।

कहा जाता है की स्त्री गहन है उसे चाहते रहो समझने की जरुरत नहीं, मैं हर स्त्री को कहूँगी पुरुष को सिर्फ़ समझो वो भावुक बच्चे सा है तुम्हें खुद ब खुद चाहने लगेगा॥

(भावना ठाकर, बेंगलोर) #भावु।