बुलावा

रिया की उम्र तो हो चली थी पर इतनी भी नही थी कि बुलावा ही आ जाये। एक रात को 4 बजे उसे आभास हुआ यमराज जी सामने खड़े है और बोल रहे हैं, " बहुत हो गया चलो चित्रगुप्त जी की लिस्ट में तुम्हारा नाम आ गया " । सुबह वो परेशान सी अपने इर्द गिर्द भीड़ को अनुभव कर रही थी, शरीर बेजान हो चुका था, मन सब जगह भाग रहा था, मैके ससुराल के सारे लोग विलाप कर रहे थे , " अरे ये तो अभी हम सब से छोटी है, कैसे ईश्वर ने उठा लिया!!" फिर दूसरे शहर से उसकी बेटियां भी आई, उनका विलाप क्रंदन रिया से देखा ही नही जा रहा था । उनके लिए वो कूद के उठना चाहती थी क्योंकि किसी भी हाल में बचपन से उन्हें रोने नही दिया था । हज़ार बेटों से बढ़कर उसकी विलक्षण बुद्धि वाली बेटियां थी, पर क्या करे आज वो मजबूर थी ।

कोने में दरवाजे के पीछे छुपे यमराज जी सिर्फ उसी को दिख रहे थे, एक बार फिर मन ही मन मिन्नते की, कुछ तो समय दीजिये । फिर मन की आंखे पति परमेश्वर को खोजने लगी, देखा सोफे में बैठे चिंतन मनन कर रहे हैं ,"अभी तो कल ही हमलोग आगे की प्लानिंग कर रहे थे, एनीवर्सरी कैसे मनाएंगे सोच रहे थे,  ये क्या हो गया "। रिया के मन ने कहा, " ए जी, आज आपका दुखहरण डंडा कहाँ है, जिससे आप कोई भी बाहरी तत्व बदमाशी करता था, तो भगा देते थे " , मुझे बचा लो, एक रात के डायरिया मे मै स्वर्ग कैसे चले जाऊं । चलो अब जाना ही है तो छोटी बेटी को मन ही मन कहा, "तुम्हारा मोबाइल मस्त है, एक प्यारी सी फ़ोटो लो, आखिर फेसबुक में भी तो डालना ही होगा " ।

अचानक सड़क से एक जोर की आवाज़ आयी," ले दही"।  और उसकी नींद खुल गयी चोंक कर उठी अरे ये तो सपना था, पूरा चेहरा आँसुयो से भरा था । बिस्तर से उठकर वो डांस कर रही थी ।


भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर