कामयाबी मिले ना मिले, जंग हौसलों की जारी रखेंगे - हम भारत माता के सपूत हैं

जीवन सहजता से जीने और संघर्षों को चुनौती समझ, जज्बा बुलंद रखना, जीवन का मूल मंत्र है - एड किशन भावनानी

गोंदिया - भारत में वर्तमान समय में हमारे आदरणीय ऐसे बुजुर्गों की संख्या बहुत कम होगी, जो अपने उम्र की सव्वीं दहलीज के पार होंगे। जो ऐसी बड़ी उम्र के नागरिक इस धरातल पर हैं, तो उन्हें जरूर याद होगा कि सन 1918 में भी आज के दौर जैसी ही प्लेग महामारी फैली थी और वैश्विक रूप से भारी जनहानि हुई थी। वर्तमान समय में तो कई गुना अधिक तकनीकी मानवीय बुद्धि, बौद्धिक क्षमता के विकास के कारण ऐसा हम मान कर चलें तो मानव ने चांद को भी मुट्ठी में कर दिया है। परंतु पिछले वर्ष 2020 की शुरुआत से कोरोना महामारी ने मानवीय सृष्टि पर हमला कर दीया और हमें जंग, लड़ाई, मुकाबला, महामारी, कोरोना वरियर्स, लॉकडाउन, आईसीएमआर, दिशानिर्देश, इत्यादि अनेक सैकड़ों शब्द अलग-अलग स्वरूप में आज एक व्यवहारिक रुप से सुनाई दे रहे हैं और तीव्रता से चलन में हैं और हो भी क्यों ना ? क्योंकि हम एक महायुद्ध लड़ रहे हैं, एक तूफान और सुनामी रूपी महामारी कोविड-19 से और एक कदम बढ़कर, ब्लैक फंगस वाइट फंगस से भी तीव्रता से मुकाबला कर रहे हैं।.....बात अगर हम हमारी भारत माता की करें तो हर जंग से लड़ने में हौसले की ताकत भारत माता की मिट्टी में ही समाई हुई है और अपने हर सपूत को यह दर्जा कूट-कूट कर भर रही है और इस मिट्टी से ही हम सीखे हैं कि जीवन में मुसीबतें आएं तो कभी भी घबराना नहीं, गिरकर उठने वाले को ही बाज़ीगर कहते हैं और हमारा हर नागरिक, हर सपूत बाज़ीगर है। अच्छे दिनों के लिए बुरे दिनों से लड़ना पड़ता है। चाहे वह कोरोना हो, ब्लैक फंगस हो, व्हाइट फंगस या जिंदगी की कोई और मुसीबतें हो जो खलनायक की तरह आती है, तो हमको हीरो की तरह फाइटर बनना है, क्योंकि सुख, शांति हम धनबल से खरीद नहीं सकते। दुखों को बेच नहीं सकते, क्योंकि यह दुख, मुसीबतें रुई से भरे बोरे की तरह हैं जो देखने में बहुत भारी, और उठाने में बहुत हल्के रहती हैं।... यहीं से हमारी हौसलों की बौद्धिक ताकत शुरू होती है, क्योंकि जीवन को सहजता से जीने और संघर्षों को चुनौती समझकर जज्बा बुलंद रखना, जीवन का मूल मंत्र है। जो हर भारत माता के सपूत आसानी से अपना सकते हैं, क्योंकि हम अगर बहुत सारी मुसीबतों और परेशानियों से गुजर रहे हैं तो एक बात ध्यान रखें कि सितारे कभी भी अंधेरे के बिना नहीं चमकते। जो मुसीबतों के साथ खड़ा हो उनसे जंग  लड़े और जीते वहीं सबसे बड़ा सिकंदर है। मुसीबतें झेलने से इंसान में निखार आता है। मुश्किलें कुछ दिन की है लेकिन सफलता पूरी जिंदगी भर की है। आज की मुश्किलें आने वाले भविष्य के लिए एक बहुत बड़ी सीख, शिक्षा और सुरक्षा है। हमारा फ़र्ज़ है कि समस्या पर ध्यान न देकर उसके समाधान पर अपनी सारी ताकत लगा देना है क्योंकि सकारात्मकता से ही हौसले बुलंद होते हैं, उभरते हैं और हौसलों की महायुद्ध, सुनामी और तूफान से लड़ाई में मदद कर जीत सुनिश्चित करते हैं। क्योंकि हौसलों से ही मंजर आता है। अगर लक्ष्य और हौसले बुलंद हैं तो प्यासों के पास समुद्र भी चलकर आता है। यदि हौसले और जज्बा बुलंद है तो मुश्किलों का हल भी आसानी से निकलता है। बंजर जमीन में भी पानी को निकलना पड़ेगा। और अंधेरी रातों के दामन से ही सुनहरा कल निकलता है। हमें हमेशा सीख, परेशानियों, मुश्किल हालातों, और चुनौतियों से मिलती है, जिसका बेसिक आधार जज्बा और हौसला ही होता है, उस के दम पर ही हम मुश्किलों में लड़ सकते हैं, उलझनों, मुश्किलों, और कठिनाइयों से ही हमें हर हाल में जीने का हुनर आता है। आज के महामारी, लॉकडाउन, आर्थिक दुर्बलता, शासकीय दिशानिर्देशों की कढ़ाई, सारा दिन घर में बैठने की व्यथा, इत्यादि अनुभव रूपी मुसीबतों से ही हौसलों जज्बा को रखकर हम आगे की कामयाबी का जुनून पा लें तो मुश्किलों की क्या औकात है:?? कि हम पर हावी हो, क्योंकि ईश्वर, अल्लाह की रहमत उसी पर होती है जिसकी मेहनत, हौसला, जुनून, जज्बा,, मुश्किलों से ज्यादा होता है। क्योंकि शिक्षाक्षेत्र से भी बड़ी-बड़ी डिग्रियां पाने के बाद भी हमें उस क्षेत्र की फील्ड में ग्राउंड वर्क पर प्रैक्टिस कर प्रैक्टिकली सीखना पड़ता है। उसी तरह कठिनाईयों, मुश्किलों, परेशानियों, को झेल कर ही हम सीख सकते हैं। अतः उपरोक्त पूरे विवरण का अगर हम विश्लेषण करें तो हमें महसूस होगा कि, जीवन में कामयाबी मिले न मिले जंग हौसलों की हम जारी रखेंगे, हम भारत माता के सपूत हैं जीवन सहजता से जीने और संघर्षों को चुनौती समझ जज्बा बुलंद रखना जीवन का मूल मंत्र है। किसी ने सच ही कहा है । 

जियो इतना कि जिंदगी कम पड़ जाए।

हंसो इतना कि रोना कम पड़ जाए।। 

किसी चीज को पाना तो किस्मत की बात है। 

मगर हौसला इतना रखो कि।। 

ईश्वर अल्लाह भी देने को मजबूर हो जाए। 

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र