नई शिक्षा नीति ; संभावनाएं एवं चुनौतियां "







विश्व के श्रेष्ठ विद्यालयों की रैंकिंग में भारत के यूनिवर्सिटीज को टॉप 100 में स्थान न मिल पाने के कारण नवीन शिक्षा नीति में बड़े बदलावों की अपेक्षा की जा रही थी  इसी परिप्रेक्ष्य में देश की नवीन शिक्षा नीति 2020 की घोषणा कर दी गयी है, 21वीं सदी की इस नई शिक्षा नीति पर बात करने से पूर्व हमें शिक्षा नीति के इतिहास के सम्बंध में कुछ बातें जान लेनी आवश्यक है ।
स्वतंत्रता के पश्चात भारत में शिक्षा के क्षेत्र में यूनिवर्सिटी एजुकेशन कमीशन (1948-49)  गठित किया गया जिसके ऊपर भविष्य की शिक्षा नीति को तय करने का दारोमदार था । इसके पश्चात सेकेण्डरी एजुकेशन कमीशन (1952-53) का गठन किया गया किन्तु कुछ खास प्रगति नहीं हो सकी ।
अन्ततः कोठारी आयोग (1964-66) की अनुशंसा पर 1968 में देश की पहली शिक्षा नीति की घोषणा हुई जिसमें भारत के भविष्य के शिक्षा व्यवस्था की नींव रखी गयी एवं  इस नीति के द्वारा सामाजिक दक्षता , राष्ट्रीय एकता , समाजवादी समाज को स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया  । समय के साथ सुधार की बढ़ती आवश्यकता को ध्यान में रखकर इसे 1992 में संसोधित भी किया गया ।

इसके बाद के वर्षों में कोई नवीन नीति लाये बिना ही योजनाओं एवं कानूनों के माध्यम से शिक्षा में सुधार होते रहे हैं यथा- 2000 एव 2005 में एनसीईआरटी ने राष्ट्रीय करिकुलम फ्रेमवर्क के माध्यम से प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के पाठ्यक्रमों में परिवर्तन किया था।  इसके उपरांत 2009 में राष्ट्रीय निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा कानून पारित हुआ था जिसका मूल ध्येय 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करवाना था । इसी क्रम में 2017 में यू जी सी ने इंस्टीटूट ऑफ ऐमिनेंस डीम्ड टू यूनिवर्सिटी नियमन 2017 भी जारी किया जो कि निसन्देह एक बड़ा बदलाव था ।
शुरुआती दौर में बदलते परिदृश्य के अनुसार सुधार करने के लिए 1986 में पुनः दूसरी शिक्षा नीति घोषित की गई थी ,
तब से लेकर आज तक उसी पैटर्न पर देश की शिक्षा व्यवस्था गतिमान अवस्था में थी ।
34 वर्षों के पश्चात टी एस आर सुब्रमण्यम समिति की रिपोर्ट के बाद कस्तूरीरंगन समिति का गठन किया गया इस समिति ने अपनी रिपोर्ट 31 मई 2019 में प्रकाशित की , नवीन शिक्षा नीति 2020 काफी हद तक इन्हीं की अनुशंसा पर आधारित है ।
नई शिक्षा नीति में स्कूल शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किए गए हैं यथा - मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है जो कि अपने आप में बड़ा कदम है , शिक्षा को समर्पित पृथक मंत्रालय बनाने से शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक प्रयास किया जाना सम्भव हो सकेगा ।
इसके अतिरिक्त इसमें  जीडीपी का छह फ़ीसद शिक्षा में लगाने का लक्ष्य रखा गया है , वर्तमान में  जिसका प्रतिशत 4.43 फ़ीसद है , इससे अवश्य ही बेहतर आधारभूत ढांचे का निर्माण किया जा सकेगा एवं बेहतर वातावरण में प्रभावी शिक्षण गतिविधि सुनिश्चित की जा सकेगी ।


नई शिक्षा का लक्ष्य 2030 तक 3-18 आयु वर्ग के प्रत्येक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है जिससे लक्षित शिक्षण पद्धति का विकास किया जा सकेगा ।  पुराने ढांचे के अनुसार 10+2 पद्धति के स्थान पर अब 5+3+3+4 पद्धति को लागू करने की योजना है । इसकी सबसे खास बात है कि 3 वर्ष के बच्चों को फाउंडेशनल स्टेज में आंगनवाड़ी , बालवाटिका , प्ले स्कूल आदि माध्यमों से स्कूल पूर्व महत्वपूर्ण शिक्षा दी जा सकेगी । हालांकि आई सी डी एस स्कीम में इसका प्रावधान है किन्तु व्यापक रूप से अब जमीनी स्तर पर और बेहतर प्रयास किया जा सकेगा ।
5वीं तक और जहां तक सम्भव हो सके 8वीं तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा , स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग किये जाने की योजना है जिसके फलस्वरूप बच्चों में सीखने की क्षमता में वृद्धि लायी जा सकेगी ।
बच्चों की प्रतिभा को निखारने के लिए छठी क्लास से ही वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएंगे, इसके लिए इसके इच्छुक छात्रों को छठी क्लास के बाद से ही इंटर्नशिप करवाई जाएगी । इसके अलावा म्यूज़िक और आर्ट्स को बढ़ावा दिया जाएगा एवं इन्हें पाठयक्रम में लागू किया जाएगा ।
माध्यमिक शिक्षा की यदि बात की जाए तो 10वीं एवं 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं ऑब्जेक्टिव और सब्जेक्टिव फॉर्मेट में वर्ष में दो बार कराई जाएंगी ।


वहीं उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेगुलेटर रहेगा (लॉ और मेडिकल एजुकेशन को छोड़कर) अर्थात अब यूजीसी और एआईसीटीई समाप्त कर दिए जाएंगे और पूरे उच्च शिक्षा के लिए एक नेशनल हायर एजुकेशन रेगुलेटरी अथॉरिटी का गठन किया जाएगा ।
उच्च शिक्षा में 2035 तक 50 फ़ीसद GER (Gross Enrolment Ratio) पहुंचाने का लक्ष्य है जो वर्तमान में 26.3% है ।  निसन्देह  यह एक महत्वकाँक्षी लक्ष्य है जिसको प्राप्त करने के लिए इसे गम्भीरता से लागू करना ही एकमात्र विकल्प होगा ।
इसे बढ़ाने के लिए 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ने की योजना बनाई गई है । इस हेतु 2030 तक या उसके बाद के वर्षों में हर जिले में कम से कम एक बहुविषयक संस्था बनाने की दिशा में प्रयास करेगा ।
देश के तकनीकी संस्थानों में भी कला और मानविकी के विषय पढ़ाये जाएंगे अब छात्रों को कला और विज्ञान में से किसी एक को चुनने की स्वतंत्रता नहीं होगी  यह अपने आप में एक बड़ा बदलाव है , इससे छात्रों का रुझान गणित, विज्ञान, तकनीकी के क्षेत्र में बढ़ाया जा सकेगा ।
इस शिक्षा नीति के अंतर्गत प्रथम बार मल्टीपल एंट्री और एग्ज़िट सिस्टम लागू किया गया है अर्थात आज की व्यवस्था में अगर चार साल इंजीनियरिंग पढ़ने या छह सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी कारणवश आगे नहीं पढ़ पाते हैं तो आपके पास कोई उपाय नहीं होता, लेकिन मल्टीपल एंट्री और एग्ज़िट सिस्टम में एक साल के बाद सर्टिफ़िकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल के बाद डिग्री मिल जाएगी इससे उन छात्रों को बहुत फ़ायदा होगा जिनकी पढ़ाई बीच में किसी वजह से छूट जाती है ।


इसके साथ ही उच्च शिक्षा में कई बदलाव किए गए हैं जो छात्र रिसर्च करना चाहते हैं उनके लिए चार साल का डिग्री प्रोग्राम होगा एवं जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं वो तीन साल का ही डिग्री प्रोग्राम करेंगे किन्तु जो रिसर्च में जाना चाहते हैं वो एक साल के एमए (MA) के साथ चार साल के डिग्री प्रोग्राम के बाद सीधे पीएचडी (PhD) करने की अनुमति होगी उन्हें एमफ़िल (M.Phil) की आवश्यकता नहीं होगी ।
उच्च शिक्षा में यूजीसी , एआईसीटीई , एनसी टी ई की जगह अब एक ही नियामक अस्तित्व में रहेगा एवं टॉप ग्लोबल रैंकिंग रखने वाली यूनिवर्सिटीज को भारत में अपनी शाखा खोलने की अनुमति भी प्रदान की जाएगी । इसके माध्यम से शिक्षा को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप दिया जा सकेगा । जिससे विश्व के बेहतरीन यूनिवर्सिटीज में प्रवेश लेने के लिए भारतीय छात्रों को विदेश नहीं जाना पड़ेगा ।
इसके अलावा शिक्षा नीति के अंतर्गत शीर्ष निकाय के रूप में नेशनल रिसर्च फ़ाउंडेशन (एनआरएफ़) की स्थापना की जाएगी  इसका मुख्य उद्देश्य विश्वविद्यालयों के माध्यम से शोध की संस्कृति को सक्षम बनाना है ।  एनआरएफ़ स्वतंत्र रूप से सरकार द्वारा, एक बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स द्वारा शासित होगा ।


हाल के दिनों में वैश्विक महामारी के कारण ऑनलाइन शिक्षा की बढ़ती मांग ने डिजिटलीकरण को प्रोत्साहित किया है इसके तहत ई-पाठ्यक्रम क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित किए जाने है एवं वर्चुअल लैब विकसित करने के साथ ही एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फ़ोरम (NETF) का भी निर्माण किया जाएगा ।
पाली , फ़ारसी एवं प्राकृत भाषाओं हेतु अनुवाद संस्थान की स्थापना की जाएगी जिससे इन भाषाओं का संरक्षण किया जा सके ।
नेशनल मेंटरिंग प्लान के तहत शिक्षकों का उन्नयन किया जाएगा ।
उक्त प्रावधानों ने नवीन शिक्षा नीति द्वारा नवीन सम्भावनाओं को साधने के प्रयास किया है किंतु इस सन्दर्भ में कई चुनौतियां अब भी विद्यमान है जिसको सम्बोधित किये बिना इसकी सफलता अधूरी मानी जायेगी ।

शिक्षा पर जीडीपी का 6 % खर्च करने का प्रावधान किया गया है , हालांकि 1986 की शिक्षा नीति में भी इतने फीसदी खर्च करने की बात की गई थी किन्तु 2017-18 की यदि बात की जाए तो सरकार जीडीपी का महज 2.7% हिस्सा ही खर्च कर पाई थी । 2.7 एवं 6 फीसदी के मध्य उपस्थित रिक्त स्थान को भरना एक बड़ी चुनौती मानी जा रही है ।

इसके अलावा तीन संस्थाओं की जगह एक संस्था का निर्माण करना विकेंद्रीकरण की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करने जैसा है , ऐसे में विद्यालयों की स्वायत्तता का बने रहना भी बड़ी चुनौती है ।


बच्चों के लिए शिक्षा का माध्यम मातृभाषा बनाये जाने से अलग अलग जगहों पर कई समस्यायें उत्पन्न होने की संभावना है ।


ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो के 50 फीसदी लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए अभी तक कोई खाका तैयार नहीं किया जा सका है जिससे स्थिति अभी भी अस्पष्ट दिखाई दे रही है ।


 


उपर्युक्त चुनौतियों को हल करने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति को आवश्यकता होगी जिसके बल पर ही इस नीति का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर किया जा सकेगा । इसके अलावा सरकार द्वारा स्वयत्तता प्रदान करने की नीति को अंगीकार करना होगा जो आने वाले समय में शिक्षण संस्थाओं के विकास में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सके । इसके साथ ही  बुनियादी अवसंरचना को मजबूती प्रदान करनी होगी जिससे वैश्विक स्तर की संरचना प्राप्ति को सम्भव बनाया जा सके  ।


 नित्या सिंह
सिविल सेवा अभ्यर्थी 
ग्राम /पोस्ट - नियामताबाद चंदौली
ईमेल - Nitafe4@gamil.com