लड़ूँगी,झगड़ूँगी, रूठ जाऊँगी,
लेकिन तुम्हारा साथ सदा निभाऊंगी।
ग़र उठेगी ऊँगलियां तुमपर,
मैं हाथ वो तोड़ जाऊँगी।
लेकिन तुम्हारा साथ सदा निभाऊंगी...
भूल जाते जो लोग तुम्हें काम होने के बाद,
पछतायेंगे एक दिन कर तुम्हारी नेकियां याद।
दुनियां की चलाकियों में तुम पीछे रह गये,
शतरंज के बस मोहरे बनकर रह गये।
तुम्हारी नेकियों का हक़ ख़ुदा से माँग लाऊँगी,
लेकिन तुम्हारा साथ सदा निभाऊंगी...
मुझे और कुछ न चाहिए तुम्हारे सिवा,
तुम ही हो मर्ज़ मेरे और मर्ज़ की दवा।
हर परेशानी को हँसकर झेल जाते हो,
गुस्सा आता है रक़ीबों को भी गले लगाते हो।
लड़कर जहान से तुम्हारी खुशियाँ लाऊँगी,
लेकिन तुम्हारा साथ सदा निभाऊंगी...
डॉ. रीमा सिन्हा (लखनऊ)