एक दीप प्रेम का

सुन सखे  इस निलय में,

एक दीप प्रेम का जलाओ, 

बाती की भांति जलूं अब, 

बनकर शलभ तुम आ जाओ| 


निमीलित मृण्मय नयन में, 

हे मदन कुछ क्षण है संचित,

पार्श्व  में तेरे यूं जाकर, 

तन बदन होगा ना सुरभित| 


तेरे वक्ष वलय में प्रियवर, 

मेरा जो निलय आरक्षित, 

एक दीप प्रेम का जला  , 

रोम रोम अब करो  प्रकशित|


सविता सिंह मीरा 

जमशेदपुर