हर कोई बाँटे ज्ञान

यहाँ हर कोई बाँट रहा हे ज्ञान

लेकिन खुद विचारों से अज्ञान

दे न किसी अपने को सम्मान

उम्मीद हे वह रखे मेरा मान


अच्छा होने हे करे दिखावा

स्वार्थ बस मिले पैसो का मावा

नजर आये जो उसका पहनावा

लेकिन मन में हे उसके कावा


अहंकार करता अपने वक्त

खुद न हे वह बहोत सख्त

नारी को समजे पैरो कि धूल 

और वह हे धोतरे का हि फुल


नाज न कर इतना अपने पर

होना एक दिन तुझे भी मिट्टी

इंसान को समज तू इंसान

कर्म करता जा तू अच्छी


कु, कविता चव्हाण, जलगांव, महाराष्ट्र