बातूनी मौन

पूछा था तुमने एक दिन

क्या देखती हूं मैं

तुम्हारी कविताओं में

देर-रात तक ??

दो शब्दों के मध्य की रिक्तता में

दुबके हुए

कुछ उजास के पल..

आंसुओं में भीगी हुई मुस्कराहटें..

संभावनाओं के इंतजार में

राह तकती आंखें ..

इन सब में शायद

स्वयं को महसूस कर रही होती हूं मैं ,

अनंत यादों के साथ देर तक बतियाना

कभी कभी सुखद होता है सब,,है न !!

इतना बातूनी होता है मौन ,

ये अब पता चला !!

नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश