राहुल गांधी की मिजोरम यात्रा

अगले माह जिन 5 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे है, उनमें एक उत्तर-पूर्वी प्रदेश मिजोरम भी है। यहां 7 नवम्बर को यानी पहले ही चरण में मतदान होगा। 40 सीटों वाली यहां की विधानसभा में फिलहाल मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है। इसका चुनावी मुकाबला अब तक तो मुख्य विपक्षी दल जोराम पीपुल्स मूवमेंट के साथ माना जाता था लेकिन अब इन दोनों के मुकाबले कांग्रेस भारी दिखाई देने लगी है।

 अब तक कांग्रेस को तीसरे नंबर पर समझा जा रहा था लेकिन राहुल गांधी की मंगलवार को खत्म हुई दो दिवसीय मिजोरम यात्रा ने जो संकेत दिये हैं उससे अनुमान लगाये जाने लगे हैं कि 3 दिसम्बर को निकलने वाले चुनावी परिणाम सबको चैंका सकते हैं। वैसे राहुल की यह यात्रा राजनैतिक सन्दर्भों से कहीं बढ़कर है। चुनावी जीत-हार से भी परे और बहुत आगे। 

मुख्यमंत्री जोरामथंगा के बारे में कहा जा रहा था कि 1998 और 2003 की तरह वे फिर से सतत दो बार यह पद धारण करने वाले सीएम बन सकते हैं। इसका कारण यह था कि पिछले चुनाव में कांग्रेस को, जो उस समय सत्तारुढ़ थी, केवल 7 की संख्या में सिमटकर रह गई थी। 

कहने को भाजपा ने एमएनएफ के साथ चुनाव पूर्व गठबन्धन किया था पर जब पिछले वक्त एमएनएफ को पूर्ण बहुमत मिल गया तो जोरामथंगा ने साफ कर दिया कि उन्हें भाजपा की जरूरत नहीं है। फिर भी भाजपा अपने को गठबन्धन का हिस्सा बतलाती रही। उसके हिस्से में एक ही सीट आई थी। अब की एमएनएफ ने हमार पीपुल्स कन्वेंशन (रिफॉर्मेशन) से गठबन्धन कर लिया है। 

जोराम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) के 6 विधायक हैं। राहुल की यात्रा के पूर्व तक मिजोरम पर खास चर्चा नहीं होती थी। ज्यादातर राजनैतिक विश्लेषकों का समय पहले राजस्थान, मप्र व छत्तीसगढ़ पर खर्च होता था। बाद में तेलंगाना पर भी होने लग गया था। मिजोरम चर्चा से बाहर ही था पर यहां राहुल ने जैसा मौसम बदला है, मिजोरम भी सियासी विमर्श का हिस्सा बन गया है।

वैसे मिजोरम में राहुल के पदार्पण का महत्व राजनैतिक चर्चा व समीकरण, चुनाव आदि से बढ़कर है। उत्तर-पूर्व में ही स्थित एक अन्य राज्य मणिपुर में पिछले दिनों हुए घटनाक्रम का असर अन्य छह राज्यों पर भी होता दिख रहा है। इनमें मिजोरम भी शामिल है। वैसे तो ज्यादातर उत्तर-पूर्वी राज्यों का मानस केन्द्र में आरुढ़ पार्टी के साथ जाने का होता है ताकि उनके विकास में बाधा न हो।

 भाजपा की इस हिस्से के कई राज्यों में पूर्ण बहुमत वाली या गठबन्धन की सरकारें है। मणिपुर की घटना के बाद यहां के राज्यों को समझ में आ गया है कि भाजपा का लक्ष्य यहां का विकास करना नहीं वरन अपनी विचारधारा को फैलाना है। प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण यह पूरा इलाका भाजपा के लिये आर्थिक दोहन के लिहाज से महत्वपूर्ण है। 

कई राज्यों में ईसाइयों की बहुलता भी उसकी आंखों में खटकती है। मणिपुर में मैतेई हिंदू आदिवासियों और ईसाई कुकी समुदाय के बीच पिछले कई माह से जारी संघर्षों ने जिस तरह से मणिपुर को जलाकर रख दिया है, उसने भी सभी राज्यों की आंखें खोलकर रख दी हैं। असम भी भाजपा एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रयोगशाला बनी हुई है, वह भी ये सारे राज्य देख रहे हैं। 

यहां के लोगों को अब यह समझ में आने लगा है कि भाजपा-संघ द्वारा इन राज्यों में सायास अशांति का वातावरण बनाया जा रहा है। नफरत का जो जहर फैलाने की कोशिश भाजपा व केन्द्र सरकार कर रही है, उसके विरूद्ध राहुल द्वारा शांति व प्रेम का पैगाम मिजोरम के नागरिकों को आकर्षित कर रहा है। आइजोल में सोमवार को तथा लुंगलेई में मंगलवार को हुई आम सभाओं में एवं एक प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने बतलाया कि विकास के लिए शांति आवश्यक है और यहां के युवाओं को समझना होगा कि उनके लिए विकास कितना जरूरी है। उन्होंने साफ किया कि भाजपा व संघ ने सत्ताधारी एमएनएफ को मिजोरम में अपने प्रवेश के लिये इस्तेमाल किया है। 

राहुल की यह बात निश्चित ही लोगों तक पहुंची होगी कि कांग्रेस समावेशी भारत का हिमायती है जबकि भाजपा व संघ बहुसंख्यकवाद के सिद्धांत पर काम कर रहा है। राहुल गांधी ने इस राज्य के साथ अपने पहले-पहल के सम्बन्ध को बतलाकर लोगों को भावुक कर दिया है जिसमें उन्होंने बतलाया कि 16 वर्ष के एक किशोर के रूप में वे अपने दिवंगत पिता व तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ 1986 में आए थे। उल्लेखनीय है कि राजीव गांधी के कार्यकाल में ही मिजो शांति समझौता हुआ था। 

जिसके बाद इस राज्य से अलगाववादी ताकतों ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में खुद को शामिल किया था। इस राज्य के विकास में उस समझौते का बड़ा हाथ था। इसे मिजोरमवासी नहीं भूल सकते। यह बात तो सही है कि राहुल की यह यात्रा विधानसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में हो रही है और उसका फौरी उद्देश्य 7 नवंबर के मतदान को अपने पक्ष में प्रभावित करना है लेकिन उसे सीमित सन्दर्भों में नहीं देखा जाना चाहिये। 

मणिपुर के घटनाक्रम से सभी उत्तर-पूर्वी राज्य सहमे हुए हैं। भाजपा-संघ की विभाजनकारी नीति एवं केन्द्र द्वारा संघवाद (फेडरलिज्म) पर प्रहार के दुष्परिणाम आज देश देख रहा है। हर राज्य में अपनी सरकारें बनाना और जहां न हो वहां असंवैधानिक, अनैतिक या गैरकानूनी तरीकों से बनाने की प्रवृत्ति छोटे राज्यों के लोगों को विशेष रूप से भयभीत कर रही है। राहुल की यह यात्रा चुनावी लिहाज से कितनी सफल होती है, कहना मुश्किल है पर उसके सकारात्मक परिणाम जरूर निकलेंगे।