कमल जयंत
बिहार राज्य में जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद अब देश भर में सवर्ण समाज के बुद्धिजीवियों ने यह बहस छेड़ दी है कि दलितों ने महादलितों और पिछड़ा वर्ग ने अति पिछड़ा वर्ग के अधिकारों पर कब्जा जमाया हुआ है। 6743 जतियों में बंटे दलित और पिछड़ा वर्ग के लोगों को शुरू से ही आपस में एक-दूसरे से यह कहकर लड़ाया जाता रहा है कि महादलितों के अधिकारों को किसी और ने नहीं बल्कि दलितों ने ही छीना है और पिछड़ा वर्ग की समृद्ध जतियों ने अति पिछड़ा वर्ग के हिस्से में आने वाली सरकारी नौकरियों पर अपना अनाधिकृत अधिकार जमा रखा है। बिहार राज्य ने जो जातीय गणना के आंकड़े जारी किए हैं, उसके मुताबिक ब्राह्मणों की आबादी 3.65 प्रतिशत, राजपूत 3.45 फीसदी और भूमिहार 2.86 फीसदी हैं।
देश के सभी राज्यों और केंद्र सरकार की नौकरियों में सबसे ज्यादा लोग किस जाति के लोग काबिज हैं, इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है, सवर्ण जाति के बुद्धिजीवियों को यह बात अच्छी तरह से मालूम है कि अगर कहीं दलितों और पिछड़ा वर्ग के लोगों को इस वास्तविकता का पता चल गया तो देश के बहुजन समाज के लोगों को मालूम हो जाएगा कि किसने किसका हक छीना है और लगातार शोषित और वंचित समाज के लोगों का हक कौन छीन रहा है, ये भी उन्हें जानकारी हो जाएगी। ऐसी स्थिति में सवर्ण जातियों के बुद्धजीवियों द्वारा फैलाया जा रहा झूठ लोगों के सामने आ जाएगा।
बिहार राज्य द्वारा जारी किए गए जातीय गणना के आंकड़े के बाद सवर्ण बुद्धिजीवी समाचार चैनलों और यू ट्यूब पर चलायी जा रही बहस में यही प्रचार कर रहे हैं कि दलितों ने महादलितों और पिछड़ी जाति में समृद्ध जातियों ने अति पिछड़ा वर्ग के अधिकारों को छीना है, जबकि वे इन चैनलों में इस बात की बहस नहीं कर रहे हैं कि सरकारी नौकरियों, न्यायपालिका, सेना व अन्य सेवाओं में किस वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व उनकी आबादी के मुक़ाबले कहीं ज्यादा अधिक है। अगर इस पर चर्चा हुई तो आम जनता को इस बात की जानकारी हो जाएगी कि वास्तव में इस देश में किस वर्ग के लोगों ने किसके हक पर डाका डाला है।
बहुजन नायक कांशीराम ने अपनी पार्टी के गठन के साथ ही ये नारा दिया था कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी। कांशीराम जी ने बसपा के गठन से पहले इस देश के दलितों, पिछड़ा वर्ग की आबादी और उनको सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्रों में मिल रहे प्रतिनिधित्व के बारे में गहन अध्ययन किया और पाया कि इन वर्गों की देश में इनकी आबादी के मुताबिक इन्हें उचित अधिकार और प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। अब कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी कांशीराम जी की बात को आगे बढ़ा रहे हैं, वे भी देश में जातीय गणना की मांग को प्रमुखता से उठा रहे हैं और कांग्रेस शासित राज्यों में जातीय गणना कराने का निर्णय भी ले लिया गया है।
राहुल गांधी का मानना है कि देश में जातीय गणना होने के बाद इस बात की जानकारी उपलब्ध हो सकेगी कि देश में किस जाति की कितनी आबादी है और उन्हें अभीतक उनकी आबादी के मुताबिक सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्रों में उनके अधिकार दिये गए हैं या नहीं। राहुल गांधी का कहना है कि सरकार बनने पर जिन वर्गों की जितनी आबादी है, उन्हें उनकी आबादी के अनुपात में सरकारी और गैर सरकारी संसाधनों में प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। वहीं सवर्णों के अधिकारों की संरक्षक सरकार ने तो अघोषित तौर पर दलितों और पिछड़ा वर्ग को सरकारी नौकरियों में मिलने वाले आरक्षण को भी खत्म करना शुरू कर दिया है।
जब इन वर्गों ने निजी क्षेत्रों में भी नौकरियों में आरक्षण दिये जाने की मांग उठानी शुरू की तो सरकार ने धीरे-धीरे करके सरकारी संस्थाओं का निजीकरण करना शुरू कर दिया और सरकारी संस्थानों में भी सारे पदों को आउट सोर्सिंग के जरिये भरना शुरू कर दिया। आउट सोर्सिंग और संविदा पर दी जाने वाली नौकरियों में संभवत: आरक्षण की व्यवस्था लागू नहीं है।
समाचार चैनलों और यू ट्यूब पर चल रहे चैनलों में दलितों और पिछड़ा वर्ग के लोग इन सवर्णों के गलत तरीके से पेश किए जा रहे आंकड़ों का कोई जवाब नहीं दे पा रहे हैं, इस वजह से समाचार चैनलों के जरिये पूरे समाज में एकतरफा यही बात कही जा रही है और शिक्षा व सामाजिक जानकारी के अभाव में महादलित और अति पिछड़ा वर्ग ये मान रहा है कि उनके अधिकारों को मनुवादी मानसिकता से प्रेरित सवर्णों ने नहीं बल्कि उनके अपने समाज के लोगों ने ही छीना है और अनजाने में वह अपने समाज के लोगों के खिलाफ ही खड़ा है।
दलितों के साथ ही पिछड़ा वर्गों के लिए विभिन्न विभागों में लाखों पद खाली हैं, लेकिन इन रिक्त पदों पर इस वर्ग के लोगों को आजतक नौकरी पर नहीं रखा गया। एक तो इन वर्ग के लोगों को इनके मौलिक अधिकार अभी तक नहीं दिये गए और उल्टे इन वर्गों को यह बताया जा रहा है कि उनके अधिकार उनके समाज में पहले से शिक्षित समाज के लोगों ने हड़प लिए हैं। जबकि ये लोग मीडिया में दलितों और पिछड़ा वर्ग की बात नहीं कर रहे हैं कि उन्हें सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्रों में कितना प्रतिनिधित्व और हक मिला है।
पूर्व आईएएस कुँवर फतेह बहादुर जो सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष भी हैं, इस संबंध में उनका कहना है कि मीडिया और बुद्धिजीवियों में जो विचार-विमर्श हो रहे हैं उन्हें यह भी बताना चाहिए कि हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में किन जतियों के लोगों का प्रतिनिधित्व है और विश्वविद्यालयों में दलित और पिछड़ा वर्ग के कितने प्रोफेसर और कुलपति हैं, केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री के जरिये सीधे केंद्र में संयुक्त सचिव और उप सचिव और निदेशक के पद पर लोगों की सीधी नियुक्ति कर ली।
इस सीधी भर्ती में किस वर्ग के लोग लाभान्वित हो रहे हैं, क्या इन भर्तियों में भी आरक्षण की कोई व्यवस्था लागू की गयी है, संभवत: इन भर्तियों में दलितों और पिछड़ा वर्ग के लिए किसी भी तरह की कोई आरक्षण व्यवस्था लागू नहीं की गयी है। अप्रत्यक्ष तौर पर राज्यसभा और विधान परिषदों में नामित किए जाने वाले सदस्यों में इन वर्गों का प्रतिनिधित्व कितना है, इस पर भी कोई चर्चा नहीं की जा रही है। कुँवर फतेह बहादुर का कहना है कि अभी बिहार में कराये गए आर्थिक सर्वे के आंकड़े आने बाकी हैं, जल्द ही वहाँ आर्थिक सर्वे के आंकड़े जारी होंगे।
इसके बाद ये और ज्यादा साफ हो जाएगा कि सदियों से शोषित और वंचित समाज के अधिकारों को किसने छीना है। उनका कहना है कि जब कांग्रेस शासित राज्यों में भी जातीय गणना कराये जाने पर सहमति बन गयी है तो ऐसे में केंद्र सरकार को जाति आधारित गणना कराना सुनिश्चित करना चाहिए, ताकि आबादी में अधिक और अधिकार से वंचित समाज को उनकी आबादी के मुताबिक सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्रों में उचित प्रतिनिधित्व और हक मिल सके।