देवी चन्द्रघण्टा

तोर माथा म आधा चंदा के घण्टा बने हे।

तोर देंह ह सोन के जइसे खूब चमकत हे।।


दसों हाथ म अस्त्र-सस्त्र धरे हच भुजाली।

सुघ्घर ताकतवर बघवा ह आवय सवारी।।


राक्छस मन ल मारे बर करथच तैंय लरई।

दानों मन के पटाटोर, गिरत, हपटत भगई।।


तोर पूजा-पाठ के महतम हवय बड़ भारी।

कल्यान अउ सुख के देवइया माता रानी।।


किरपा बरसाए सेवक बर देके दाई दरसन।

रिकीम-रिकीम के आवाज सून होथे मगन।।


आसिस मोला देहू बीरता अउ निरभयता।

बिकास मोर म होही सौम्य अउ बिनमरता।।


मन, बचन, अउ करम ले सरन म आए हौंव।

घेरी-बेरी तोर चरन म माथा ल नवाए हौंव।।


कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़

जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई।