चलते चलते गांवों में,
छाले पड़ गये पांवों में,
भरी दुपहरी कठिन सफर था,
मिली नहीं चैन कहीं हमें इस
जिंदगी की ऊंची-नीची राहों में।
सर्पीली पगडंडियाँ भी आयी,
मोड़-मोड़ पर भरीचली इतराई,
कुछ अच्छे पल थे इन फिजाओं,
चलते चलते गांवों में,
छाले पड़ गये पांवों में।
घूम लेंगे सारे झील, सरोवर
बैठ के अपनी सुंदर नाव में,
नहीं जाऐंगे पैदल चलकर,
अब छाले पड़ गये पांवों में।
आ अब अपनी भी सोचें,
सोच चुके सब परिजन का,
धन की लालच पड़ी यहां पर
इन सबकी कांव-कांव में।
चलते चलते गांवों में,
छाले पड़ गये पांवों में।
आ चलों, आ चलो सपनों के
गांवों में उड़ती फिजाओं में,
दिलखुश करती हवाओं में,
मदमाती और इंद्रधनुषी राग
रागनी गाती शरणगाहों में ।।
मदन वर्मा " माणिक "
इंदौर, मध्यप्रदेश
मो. 6264366070