जातिगत जनगणना व गरीबी

लोकतन्त्र की पहली शर्त यह होती है कि इस प्रणाली में प्रत्येक नागरिक का आत्मसम्मान व गरिमा को सत्ता सुरक्षित रखते हुए उसे सरकार में भागीदारी देती है। यह कार्य एक वोट के संवैधानिक अधिकार के बल पर सामान्य नागरिक करता है। अतः इस व्यवस्था में गरीब से गरीब नागरिक सत्ता की दया का पात्र नहीं बल्कि ‘हक’ का अधिकारी होता है। इसी वजह से प्रजातन्त्र को लोगों द्वारा लोगों की बनाई लोगों के लिए ‘सरकार’ कहा जाता है।

 भारतीय संविधान में जिस ‘लोक कल्याणकारी राज’ को स्थापित करने की बात कही गई है उसके मूल में यही सिद्धान्त काम करता है जिससे अन्तिम पायदान पर बैठा व्यक्ति भी अपना वाजिब हक पा सके। परन्तु हर देश की सामाजिक संरचना एक समान नहीं होती और अमीरी-गरीबी के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। किसी देश में नस्ल भेद के नाम पर किसी एक वर्ग के लोगों को दबा कर रखा जा सकता है और किसी दूसरे देश में जातीय (ट्राइब) के आधार पर या मजहब को आधार बना कर देशों में धार्मिक आस्था के नाम पर। मगर भारतीय उपमहाद्वीप में हमें इसका कारण जन्म के जातिगत आधार पर देखने को मिलता है।

यदि हम इतिहास में जाएं और ईसा पूर्व के वैदिक व पूर्व वैदिक कालों को खंगालें तो हमें जातियों के स्थान पर ‘जीवन दर्शन’ मिलते हैं जिन्हें भिन्न संस्कृतियों में बांटा जा सकता है। कालान्तर में जाति व्यवस्था की उत्पत्ति भारत-भूमि में हुए सांस्कृतिक द्वन्दों का ही परिणाम कहा जा सकता है जिसने भारत के सामाजिक व राजनैतिक तन्त्र को प्रभावित करते हुए अर्थव्यवस्था के अंगों को अपने कब्जे में लिया। अतः जाति आधारित व्यवसाय के उपजने से समाज में अमीरी व गरीबी का बंटवारा हुआ होगा। 

बाद में जब भारत के रहने वालों को हिन्दू कहा जाना लगा तो उनके भीतर जाति व्यवस्था ने जड़ें जमा लीं और पूरी सामाजिक संरचना को अपने कब्जे में ले लिया। अतः जातिगत आधार पर जनगणना कराने की जो कसम देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने अपनी कार्यकारिणी की बैठक में खाई है, उसके परिणाम लोकतन्त्र के चुनावी तन्त्र में न हों, ऐसा नहीं माना जा सकता।

 इसके परिणाम केवल राजनैतिक होंगे ऐसा भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि इसका सम्बन्ध अन्त में जाकर आर्थिक संरचना पर पड़ेगा। अर्थात हिन्दू समाज की गरीब जातियों के आर्थिक सशक्तीकरण का रास्ता निकलेगा। परन्तु इसकी प्रमुख विरोधी किन्तु केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा का मुख्य वैचारिक केन्द्र अपने 1951 में हुए ‘जनसंघ’ रूप में हुए जन्म से ही हिन्दू समाज की समन्वित एकता रहा है। अतः कांग्रेस का जातिगत जनगणना का विचार भाजपा के सिद्धान्त के धुर विरोधी लगता है।

 यही वजह है कि भाजपा ने इसे हिन्दू समाज की एकता को भंग करने वाला बताया है और प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सार्वजनिक सभा के मंच से घोषित किया कि वह केवल अमीर और गरीब जाति को ही मानते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि समाज में दो प्रकार के लोग ही होते हैं अमीर या गरीब। परन्तु भारत के लोककल्याणकारी राज के स्वप्न के कारण इसका विस्तार भारतीय समाज के सभी धर्मों व मान्यताओं को मानने वाले लोगों में हो जाता है। 

यदि मुस्लिम समाज को ही लें तो इसमें अमीरों और गरीबों के बीच बहुत बड़ा फासला है। इसी प्रकार अन्य धर्मों के अनुयाइयों के बीच भी हमें यह देखने को मिलेगा। मगर इसके साथ ही भारत के आजाद होने पर अनुसूचित जातियों व जन जातियों को आरक्षण प्रदान किया गया। मगर इसकी वजह हिन्दू समाज में इन जातियों के लोगों के साथ सदियों से किया जा रहा जानवरों जैसा व्यवहार था। 

हिन्दू समाज का अंग होते हुए भी अनुसूचित जाति के लोगों के साथ उनकी जन्म गत जाति के कारण कथित ऊंची जाति के लोग उनके साथ दुर्व्यवहार करते थे और उन्हें ‘अछूत’ तक कहते थे। इसके साथ ही मुस्लिम समाज में भी अरब में इसके उदगम काल से ही तीन जातियों के लोग ‘अशरफ, अजलाफ और अरजाल’ जातियों के लोग माने जाते थे।

 पसमान्दा मुस्लिम समाज का देशभर में आन्दोलन चलाने वाले नेता श्री अली अनवर के अनुसार इनमें अजलाफ सबसे नीचे पायदान पर रख कर देखे जाने वाले लोग होते हैं जिनकी तुलना हिन्दू समाज के अनुसूचित जाति के लोगों से की जा सकती है।

 अली अनवर काफी लम्बे समय तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे हैं। वह मांग करते रहते हैं कि मुस्लिम समाज की ‘अजलाफ’ जातियों के लोगों को भी आरक्षण दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही वह ‘पसमान्दा’ मुसलमानों की बात भी करते हैं। असल में पसमान्दा का अर्थ ‘पीछे छूटे हुए लोग’ होता है। यह कड़ी जाकर हिन्दू समाज के पिछड़े वर्ग की जातियों से जाकर जुड़ती है। 

अतः पसमान्दा हिन्दू समाज में भी हैं और मुस्लिम समाज में भी। वैसे वर्तमान पिछड़े समाज में कुछ मुसलमानों की जातियां भी आती हैं। अतः पिछड़े समाज का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। यह हर धार्मिक वर्ग में हो सकता है और कुल मिलाकर एक पृथक सामाजिक समूह कहलाया जा सकता है। कांग्रेस नेता श्री राहुल गांधी जब पिछड़े समाज की बात करते हैं तो उन्हें इन तथ्यों को भी ध्यान में रखना होगा। 

कांग्रेस कार्य समिति ने यह भी कहा है कि यदि वह सत्ता में आयी तो आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा को समाप्त कर देगी और सामाजिक आबादी के हिसाब से हर वर्ग की सत्ता में भागीदारी तय करेगी। जबकि भाजपा का कहना है कि वह गरीबों के हिसाब से भागीदारी तय करने के पक्ष में है। इसका अर्थ आर्थिक आधार निकलता है।