लगभग तीन दशकों से अंतरराष्ट्रीय मंचों से इस बात पर गहन चिंता प्रकट हो रही है कि जलवायु परिवर्तन का तमाम देशों के लोगों पर बहुत ही विपरीत असर पड़ रहा है। शायद ही ऐसा कोई वर्ग हो जो इससे प्रभावित न हो रहा हो। लोगों के सामने यह साफ है कि जिस तेजी से दुनिया की जलवायु में बदलाव हो रहा है उसके चलते कुछ समय के बाद कई शहरों और इलाकों के सामने उनके अस्तित्व का ही संकट खड़ा हो जायेगा। लोगों के पलायन, विस्थापन और पुनर्वास का मसला बहुत बड़ा रहेगा।
पहाड़ी क्षेत्र हों या मैदानी, समुद्र तट के इलाके हों या फिर रेगिस्तानी, जलवायु परिवर्तन के असर से शायद ही कोई अछूता रह सकेगा। स्वाभाविक है कि ऐसे क्षेत्रों में रहने वालों के सामने कोई अन्य विकल्प नहीं रह जायेगा कि वे प्रभावित क्षेत्रों को छोड़कर अन्यत्र आसरा लें। अपने मूल स्थानों को छोड़ने से किस तरह से अन्य संकट मानव जीवन में आते हैं, यह अब दुनिया भर में देखा जा रहा है।
कटते जंगलों या डूबते तटीय इलाकों को छोड़कर जाने वालों के सामने रोजी-रोटी के संकट से लेकर अपने जीवन को फिर से व्यवस्थित करने की बड़ी चुनौती होती है। नयी जगह पर खुद को ढालना मुश्किल होता है, यह भी सब जानते हैं। जलवायु परिवर्तन का जो असर मानव जीवन पर होगा, उसके विभिन्न पहलुओं पर गहन अध्ययन दुनिया भर के वैज्ञानिक, समाजशास्त्री एवं अन्य विधाओं के लोग कर रहे हैं। विभिन्न शोध एवं विश्वविद्यालयीन अध्ययन अनेक तरह के निष्कर्ष लेकर सामने आए हैं।
ऐसे सभी शोध मनुष्य के भविष्य को लेकर भयावह तस्वीरें बयां करते हैं। प्रभावित लोगों के समक्ष आजीविका से लेकर सांस्कृतिक नुकसानों तक की चर्चा होती है। लगभग हर वर्ष अनेक शासकीय व अशासकीय स्तर पर कार्यरत संस्थाएं और संगठन इस विषय पर सभा-सम्मेलन आयोजित करते हुए इस दिशा में अनेक प्रकार के उपाय सुझाते हैं। राष्ट्र संघ की भी चिंताओं में यह विषय शामिल है।
फिर भी इसमें बहुत कामयाबी मिलती नहीं दिखाई दे रही है। विभिन्न कारणों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में कमी लाना जलवायु परिवर्तन को रोकने में बहुत सहायक हो सकता है परन्तु ज्यादातर देश इस लक्ष्य को पाने में नाकाम रहे हैं। इसी क्रम में आई एक नयी रिपोर्ट बतलाती है कि ग्लोबल वार्मिंग का एक बहुत बड़ा असर दुनिया भर के बच्चों पर हो रहा है।
यूनिसेफ की ताजा रिपोर्ट बतलाती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाली बाढ़, तूफान, सूखा व जंगलों की आग के कारण हर रोज 20 हजार बच्चे स्कूल छोड़ने के लिये मजबूर हो रहे हैं। 44 देशों में हुए इस अध्ययन के आधार पर तैयार रिपोर्ट के अनुसार 2016 से 2021 के बीच 4.31 करोड़ बच्चों को शालाएं छोड़नी पड़ीं। अकेले हो या सपरिवार, विस्थापन के चलते भारत, चीन और फिलीपींस में ही 2.23 करोड़ विद्यार्थियों ने पढ़ाई छोड़ दी। बाढ़ व तूफान प्रमुख कारण रहे हैं।
अनुमान व्यक्त किया गया है कि जिस तरह से मौसम का बदलाव जारी है, 30 वर्षों में 10 करोड़ से ज्यादा बच्चे केवल इन्हीं कारणों से शालाएं छोड़ देंगे। डोमिनिका, वानुआतु जैसे छोटे द्वीपीय देशों में रहने वाले बच्चे तूफान से सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं। दूसरी तरफ, जहां बाढ़ ने बच्चों का जीवन तहस-नहस किया. उनमें सोमालिया व सूडान सबसे ऊपर हैं। सूखे के कारण 13 लाख और जंगलों में लगने वाली आग से 8 लाख से अधिक बच्चे विस्थापित हुए जिसके कारण उनके स्कूल छूटे हैं।
कनाडा, इजरायल तथा अमेरिका में सबसे ज्यादा ऐसी आगजनी हुई है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि दुनिया भर के बच्चों को अच्छी तरह से पढ़ाने के लिये और भी 4.5 करोड़ शिक्षकों की आवश्यकता है। बच्चों को लेकर प्रकाशित हुई यह रिपोर्ट केवल जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में है। गरीबी, बेरोजगारी, अकाल, भूकम्प, युद्ध, दंगे, सरकारी उत्पीड़न, पलायन, अलगाववादी या आतंकी संगठनों चलाये जाने वाले अभियानों के तहत होने वाली कार्रवाइयों जैसे और भी अनेक कारण होते हैं जिनसे बच्चों की पढ़ाई छूटती है।
इजरायल-फिलीस्तीन युद्ध को ले लें या फिर भारत के मणिपुर को देखें, तो बच्चों की पढ़ाई पर इसका असर हो रहा है। कुछ राज्यों में माओवादियों द्वारा स्कूल या तो बर्बाद किये जाते रहे हैं या उनकी दहशत के कारण लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजना बन्द कर देते हैं। ऐसे स्थलों से होने वाले पलायन के कारण बच्चों की शालाएं पीछे रह जाती हैं। ग्रामीण इलाकों में अकाल पड़ने पर परिवारों के सामने आजीविका सम्बन्धी संकट आ खड़ा होता है फलतरू वे पलायन कर जाते हैं।
शहरी क्षेत्रों में उन्हें रोजगार तो मिल जाता है लेकिन वे बच्चों की शिक्षा जारी नहीं रख पाते या छूट चुकी पढ़ाई को पुनरू प्रारम्भ नहीं कर पाते। वे जगह-जगह काम के लिये घूमते रहते हैं। इसके चलते उनके लिये सम्भव नहीं रह जाता कि बच्चों को कोई स्थायी स्कूल प्रदान करा सकें। ऐसे एक नहीं बहुतेरे कारण होते हैं जिनके चलते बच्चों को उनके स्कूल व अध्ययन को छोड़ना पड़ता है।
कारण जो भी हो, जलवायु परिवर्तन का बच्चों की शिक्षा पर होने वाले असर के बहाने से ही सही, सभी देशों की सरकारों के लिये यह इस निश्चय को दोहराने का अवसर है कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के व्यवधान दूर हों। एक आधुनिक व सभ्य समाज के निर्माण में शिक्षा की भूमिका व योगदान को बतलाये जाने की जरूरत नहीं है। इसलिये सारी सरकारें और विश्व मंच इस मुद्दे पर गम्भीरतापूर्वक विचार कर हल निकाले ताकि किसी भी बच्चे को शाला न छोड़नी पड़े।