जिसकी जैसी सोच

सर्विस रोड से सटकर एक गाँव था। उसके बाहरी इलाके में दो गर्म खून वाले युवक बाइक से फिसलकर गिर पड़े। उधर दूसरी ओर से आ रहे एक ग्रामीण ने जोर से चिल्लाना शुरु किया – “ओ हरिया!, ऐ झब्बल!, अरे सुना हो गणेश! जल्दी आवा-जल्दी आवा! देखा यहाँ जोरदार एक्सीडेंट भयल बा!” सभी खेत में से अपने काम छोड़-छाड़कर दौड़ते हुए आने लगे। उधर गणेश ने अपने गाँव के वाट्सप समूह में संदेश भेज दिया कि फलाँ के खेत के पास एक्सीडेंट हुआ है, जल्दी से आ जाइए।

उधर गाँव के भीतर जब यह खबर पहुँची तब किसी ने किसी को बताया कि गाँव के बाहर एक्सीडेंट हुआ है, तो उसने अपने साथियों को फोन लगाया और चिल्लाते हुए कहने लगा – “अरे सुनते हो! गाँव के बाहर एक्सीडेंट हुआ है न जाने कितने लोग मर गए हैं पता नहीं, जल्दी करो।” यह घटना अंधों के बीच हाथी वाली थी। जिसे जो समझ में आया वह बताने लाग। 

फिर क्या था सभी दुर्घटनास्थल पहुँचने के लिए आतुर होने लगे। जिसके पास जो गाड़ी थी वह उसी पर निकल पड़ा। जिनके पास कुछ नहीं था वे गाँव के टैंपो में ठूस-ठूस कर ऐसे बैठे जैसे एक्सीडेंट नहीं मेला देखने जा रहे हैं। कुछ सहानुभूति के लिए ‘च...च...च...च...च...’ कहता तो कोई कहता ‘बहुत दिन हुआ एक्सीडेंट देखे’।

एक बुजुर्ग जो एक्सीडेंट में घायल युवक को गौर से देख रहा था, अचानक कहने लगा – “अरे-अरे! कितना जोरदार एक्सीडेंट हुआ है। जहाँ-तहाँ बदन छिल गया है। खून तो एकदम झरने के जैसा बहा जा रहा है।” साथ में एक और बुजुर्ग खड़ा था, वह कहने लगा – “जल्दी से अस्पताल को फोन लगाया जाए, हो सकता है बच जाए।” पहले बुजुर्ग ने आँखें मूँदकर सिर हिलाते हुए कहा – “कोई फायदा नहीं। फोन का बैलेंस बर्बाद करने के सिवाय। देखते नहीं कितनी सारी अंदरूनी चोटें आई हैं। बचना मुश्किल है।”

पीड़ा से कराहते हुए एक युवक ने कहा – “ऐसा मत कहिए। जल्दी से एंबुलेस वालों को फोन लगाइए। बड़ा दर्द हो रहा है।” तभी एक और आदमी पहुँचा। दोनों बुजुर्गों से पूछते हुए खुद सवाल-जवाब करने लगा – “अरे-अरे! ऐसे कैसे हो गया एक्सीडेंट? अच्छा वो वहाँ से फिसलकर यहाँ आकर गिरे हैं। च...च...च...मैंने अपने चालीस बरस के जीवन में इतना भयंकर एक्सीडेंट कभी नहीं देखा है। न जाने आजकल के युवाओं को क्या हुआ है? न जाने कहाँ जाने की जल्दी रहती है? वैसे गलती इनकी नहीं इनके माँ-बाप की है। 

बिगड़े नवाब के बिगड़े लाड़साहब हैं। सिर पर चढ़ायेंगे तो एक्सीडेंट नहीं होगा तो क्या इनाम मिलेगा? देखो न गाड़ी का एक पहिया उधर हरिया के खेत के पास पड़ा है। वैसे यह गाड़ी कहाँ की है? अच्छा तेलंगाना का नंबर प्लेट लगा है। हो न हो यह आंध्र प्रदेश का ही होगा। आजकल बित्ते भर के छोकरे यही सब तो करते हैं। पढ़ना-लिखना तो है नहीं। सड़क के सीने पर चढ़कर चले हैं रोमियो बनने। मैंने ऐसे युवकों को लाख समझाया। कोई सुनता थोड़े न है। जिसे देखो उस पर हीरो बनने का जुनून सवार है।”

वह कुछ और कहता है तभी गाँव से एक टैंपो धड़धड़ाकर घटनास्थल पर आकर रुका। लोग उसमें एक के ऊपर एक ऐसे लदे थे जैसे वे आदमी नहीं धान की बोरियाँ हों। चालक का तो पता ही नहीं चल रहा था। वे सब दौड़े-दौड़े घटनास्थल में पड़े युवकों को खोजने लगे। तभी किसी ने बताया – “अरे आने में देर कर दी। अभी-अभी एक को एंबुलेंस में ले गए। 

हाँ एक पड़ा है देख लो उसे। उसकी प्राथमिक चिकित्सा कर दी गई है।“ लोग चालक को डाँटते हुए कहने लगे – “ससुरे को टैंपो चलाना आता भी है कि नहीं! टैंपो चला रहा था कि बैलगाड़ी। रास्ते भर कहते-कहते थक गए कि जल्दी करो। लेकिन नहीं इसे रास्ते में ही टैंपो रोककर हल्का होना था। थोड़ा रोक लेता तो इसकी माँ मर जाती।” इस तरह सभी लोग चालक को भला-बुरा सुनाने लगे। वह मुँह लटकाए इधर-उधर देखने लगा।

तभी कुछ मीडियाकर्मी आ गए। उनमें इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वाला भी था। उसने पूछताछ की तो पता चला कि फलाँ बुजुर्ग ने एक्सीडेंट देखा है। वह उससे एक्सीडेंट के बारे में सवाल-जवाब करने लगा-

मीडियाकर्मीः क्या आपने एक्सीडेंट होते हुए देखा है?

बुजुर्गः मैं सुबह-सुबह अपने खेत की ओर जाने के लिए अपनी झोपड़ी से निकला ही था कि सामने से बिल्ली रास्ता काट गयी। मैंने खुद की किस्मत और बिल्ली को खूब कोसा। सोचा थोड़ी देर रुककर निकलता हूँ। इसलिए मैं फिर से अपनी झोपड़ी में आकर बैठ गया। तभी फोन की घंटी बजी और मैं...

मीडियाकर्मी (बुजुर्ग की बात बीच में काटते हुए): हमें यह सब नहीं चाहिए। एक्सीडेंट के बारे में बताइए।

बुजुर्गः अरे बताता हूँ! वहीं तो आ रहा हूँ। ठीक है मैं फोन की बात नहीं बताउँगा। सीधे मुद्दे पर आता हूँ। मैं घर से जैसे ही बाहर निकला सरपंच जी मिल गए। मैंने उन्हें प्रणाम किया। मुझे लगा यही अच्छा मौका है पूछ लूँ कि मेरे पक्के मकान का क्या हुआ। वोट लेते समय मुझे पक्के मकान का वादा जो किया था। आज पूरे नौ बरस गुजर गए। पिछली बार भी बहलाकर-फुसलाकर वोट ले लिया था और इस बार भी।

मीडियाकर्मी (झल्लाते हुए): ये बेफिजूल की बातें मत बताएँ। असली मैटर बताएँ कि एक्सीडेंट कैसे हुआ?

बुजुर्ग (गुस्से से बरसते हुए): चल हट। हम नहीं बतायेंगे। एक माइक वीडियो लिए क्या घूमते हो खुद को तोप समझते हो। तनिक भी सुनने का धैर्य नहीं है। आजकल की युवा की पीढ़ी को न जाने क्या हो गया है? सभी घोड़े पर सवार हैं। किसी में रत्ती भर का धैर्य नहीं है।

मीडियाकर्मी समझ गए कि यह ठरकी बुड्ढा है। जिसे एक्सीडेंट के बारे में कुछ पता नहीं है। बस इधर-उधर की किए जा रहा है। फिर उन्होंने किसी से पूछा तो उसने जो नहीं देखा वह बताया। मीडियाकर्मी ने उसमें और चार झूठ वाले मसाले जोड़कर लोकल चैनल के लिए ग्लोबल खबर बना दी। 

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, चरवाणीः 7386578657