वर्ल्ड कप के मौके पर सिनेमाघरों में रिलीज हुई मुथैया मुरलीधरन की बायोपिक 800

मुंबई। हिंदी सिनेमा में एम एस धोनी, अजहरूद्दीन, प्रवीण तांबे जैसे कई भारतीय क्रिकेटरों के जीवन संघर्ष को उनकी बायोपिक फिल्‍मों में दर्शाया गया है। इस क्रम में अब श्रीलंकाई गेंदबाज मुथैया मुरलीधरन की बायोपिक 800 वर्ल्ड कप के मौके पर सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। साल 1992 में अपनी शुरुआत के बाद से मुरलीधरन ने टेस्ट मैच में 800 विकेट लेने का रि‍कॉर्ड बनाया था। साल 2010 में उन्‍होंने टेस्‍ट मैच को अलविदा कह दिया था। मुरली के नाम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 1347 विकेट दर्ज हैं। हालांकि, क्रिकेट की राहें मुरली के लिए आसान नहीं रही।

मैदान में गेंदबाजी को लेकर उनके एक्‍शन पर कई बार सवाल उठे। उनकी नागरिकता भी उनके पहचान के आड़े आती थी। दरअसल, मुरली के पूर्वज भारत से जाकर श्रीलंका बस गए थे। उन्‍हें वहां की नागरिकता मिलने में बहुत समय लगा था। ऐसे में मैदान के बाहर एक सवाल उनके सामने खड़ा रहा कि वह श्रीलंकाई हैं या तमिल? वहीं मैदान पर वह सोचते थे कि उन्‍हें अच्‍छे गेंदबाज के तौर पर देखा जाता है या चकर। चकर यानी गैरकानूनी गेंदबाजी एक्‍शन।

दरअसल, दुनिया के महान गेंदबाज में शुमार मुथैया मुरलीधरन को आस्ट्रेलिया में गेंदबाजी से रोका गया था। उन पर आरोप था कि उनका बॉलिंग एक्शन लीगल नहीं है। मैदानी अंपायर ने उनको ये कहकर रोक दिया था कि जब तक आईसीसी उनके बॉलिंग एक्शन को स्‍पष्ट नहीं करती, तब तक वे गेंदबाजी नहीं कर सकते।

उनकी फिल्‍म को लेकर तमिलनाडु में विरोध भी हुआ था। मुरलीधरन पर श्रीलंका में गृह युद्ध के दौरान लिबरेशन टाइगर्स आफ तमिल ईलम (लिट्टे) के खिलाफ सरकार के समर्थन में बयान देने का आरोप है। ऐसे कई सवालों के जवाब फिल्‍म में देने की कोशिश हुई है।

फिल्‍म की शुरुआत आखिरी टेस्‍ट से होती है। इसके साथ ही उनके जीवन की परतें खुलना शुरू होती हैं कि बचपन में क्रिकेट के प्रति उनका कैसा प्रेम था। वहां से श्रीलंका में जातीय हिंसा भड़कने के बाद उन्‍हें बोर्डिंग स्‍कूल भेजा गया, जहां उनकी खेल की प्रतिभा को फादर ने बढ़ावा दिया।

फिर स्कूल और कालेज स्तर पर उनकी ख्याति, इंग्लैंड में उनकी पहली श्रृंखला की निराशा, टीम में उनकी शानदार वापसी, विश्व कप जीत, चकिंग विवाद, संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के लिए राजदूत के रूप में उनकी भूमिका, पाकिस्तान दौरे के दौरान श्रीलंकाई टीम की बस पर आतंकवादियों द्वारा हमला और अंत में, अपने अंतिम मैच में 800 टेस्ट विकेट के मील के पत्थर तक पहुंचना जैसे प्रसंगों को फिल्‍म में शामिल किया गया है।

फिल्‍म में आस्‍ट्रेलियाई क्रिकेटर शेन वार्न और भारतीय क्रिकेटर कपिल देव का भी थोड़ा जिक्र है। इसमें इमोशन की कमी फिल्‍म को कमजोर बनाती है। मां बेटे के संबंधों को भी समुचित तरीके से एक्‍सप्‍लोर नहीं किया गया है। बायोपिक में ज्‍यादा फोकस नायक पर ही होता है। ऐसे में बाकी जुड़े लोग हाशिए पर चले जाते हैं। 800 भी उससे अछूती नहीं है।

श्रीलंका में गृहयुद्ध की वजह से हालात काफी बिगड़े हुए थे। उसकी वजह से जनजीवन पर हुए प्रभाव को फिल्‍म सतही तौर पर दिखाती है। यहां पर श्रीलंकाई क्रिकेटर अर्जुन रणतुंगा के साथ उनके संबंधों को दर्शाया गया है, लेकिन टीम के बाकी खिलाडि़यों के साथ उनके संबंधों पर कोई बातचीत नहीं है।

टीम में इकलौते तमिल होने को लेकर साथियों की उनके प्रति सोच क्‍या रही, उस पर निर्देशक लेखक ने जाना जरूरी नहीं समझा। ड्रेसिंग रूम का मौहाल कहानी में एक्‍सप्‍लोर नहीं हुआ है। हालांकि, उनके एक्‍शन पर उठे सवाल और उसे लेकर मुरलीधरन द्वारा खुद को साबित करने की लड़ाई को विस्‍तार से दिखाया है।

फिल्‍म में जब उनका किरदार लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण से मिलने जाता है तो उनकी बातचीत को बहुत सतर्कता साथ दर्शाया गया है। फिल्‍म में मुथैया मुरलीधरन की भूमिका निभाने वाले मधुर मित्तल किरदार के लिए सटीक कास्टिंग हैं। उन्‍होंने मुथैया की जिंदगी को बहुत शिद्दत के साथ पर्दे पर उतारा है।

फिल्‍म में मुरलीधरन के 800 विकेट लेने के उनके रिकॉर्ड को पर्दे पर शानदार तरीके से चित्रित किया गया है। हालांकि, 800 के प्रमोशन के दौरान मुरलीधरन ने कहा था कि यह फिल्म क्रिकेट के बारे में कम और उनके जीवन के अनजाने पन्नों के बारे में अधिक है, लेकिन फिल्म असल में इसका उलट है।

800 में मुरलीधरन के बचपन के दिनों से 800 वां विकेट हासिल करने के बीच कई क्रिकेट मैच शामिल हैं। हालांकि, इन मैचों को लेकर माहौल में व्‍याप्‍त तनाव बिल्कुल अनुपस्थित है। यहां पर कोई भी ऐसा क्षण नहीं हैं, जब आप सांसें थाम लेते हैं।