पितृपक्ष हे देखो आया
पूर्वजों को खाने पे बुलाया
राह देखे अपनों कि वो सब
इन दिनों घर जाना हो कब
पंचपकवान ना हो सही
घर में बने जो भी वहीं
श्राद्ध करो उनका हि
जीते ज़ी मिलता नहीं
मरने के बाद कहाँ मिले
करते नहीं किसीसे गिले
जो मिलता था उसमें खुश
भूक, प्यास लगे तो ना पूछ
श्राद्ध करके करो आत्मा शांत
नहीं तो देंगे वह तुम्हे हि शाप
लगेगा फिर तुमको वह पाप
घर को लगे तुम्हारे पितृदोष
इन दिनों कौववे को हे महत्व
पूर्वज आते हे उनके रूप
ऱख देना तुम थाली छत
राह न देखना उनका खत
कु. कविता चव्हाण, जलगांव, महाराष्ट्र