देश में सामाजिक, आर्थिक समीकरण बदल रहे हैं
जाति, समाज, लिंगभेद की दीवारें संकीर्ण हो रही है
शिक्षा सामाजिक बदलाव व रोजगार का साधन हो
भारत की शिक्षा नीतियों के लिए प्रयोगधर्मी बनी है।
भाषा, इतिहास में पाठ्यक्रम बदलने की कवायत से
शिक्षा में गुणात्मक सुधार के प्रयास जरूरी हो गए हैं
कोर्स की पढ़ाई में व्यावहारिक ज्ञान का समावेश हो
साक्षरता में वृद्धि, प्रतिष्ठा एवं मन में उत्साहवर्धक है।
शिक्षा व्यवस्था औपनिवेशिक चरित्र प्रदान करती है
इसका डिजिटल होना बच्चों को आकर्षित करता है
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से बच्चें सहजता से सीख रहे हैं
विवेकशीलता और ज्ञान का स्तर तेजी से बढ़ रहा है।
जिज्ञासा, सृजनशीलता पहल व सामाजिक कौशल
मोबाइल, टीवी का प्रयोग शिक्षा का विकास कर रहा
परिवर्तन प्रकृति का नियम, शिक्षा में अपनाया जाना
शिक्षा जगत को नवीनतम अभिनव स्वरूप दे रहा है।
डॉ. मनीष दवे, महालक्ष्मी नगर, इंदौर