"सवाल पूछती बेटियां"

अब बोझ नहीं बेटियां,

अब पैरों पर खड़ी हो गईं वो। 

कल कोख में मारा जिन्हें,

आज सवाल पूछती हैं बेटियां।

क्या बेटों से कम हैं हम ?,

कुश्ती से तीरंदाजी, हर क्षेत्र में। 

संसद से सड़क तक हैं हम बेटियां,

फिर क्यों है एक सांचा बनाया?।

जिसमें ये हैं ही बेटियां, बेटे नही ,

सात बजे गए मत निकलना अंधेरा होता है।

वो कहता है तो कहने दो, मर्द है।

हम हैं बेटियां इससे बढ़कर कुछ नही, 

आधी रात बीत गई साहबजादे नही आए क्यों??

कुछ सवाल पूछती बेटियां।

मेरे जेन्मते ही कपड़े गुलाबी ही क्यों?

मुझे भी नीले, पीले,हरे, 

श्यामल रंग चाहिए।

ये सवाल पूछती बेटियां? 

न जाने कितने सवालों के चाहे अनचाहे उत्तर

गर्भ से गर्भ में गिरते-ठहरते पूछती हैं बेटियां।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

लखनऊ....