घन सघन वन में बरसे

घन सघन वन में बरसे,

पी प्रीत को मनवा तरसे,

अजहुँ आया न संदेशा,

रात रमणी गात तरसे।


कासे कहूँ मूक क्रंदन,

दृग दिशा बहते अंजन,

पाहुन पावस नित आवे,

प्रीत प्रणय याद सतावे।


झरे झिलमिल जुगनू तारे,

शीत शशि तनिक न भावे,

निर्मल नील नेह नयन नत,

काक काग किस दिशा सजन रे?


आविल अक्षर अक्षत अंकित,

प्रश्नमय प्रतिक्षण आशंकित,

जीवन ज्वाल शिखा रे,

शुक शुभ संदेशा दे जा रे...


       डॉ. रीमा सिन्हा

     लखनऊ (उत्तर प्रदेश)