चलो, चलें फिर से यूं "अजनबी रास्तों" पर
थोड़ा अजनबी होकर !!
भूल जाएं मैं "मैं" हूं, है तुममें भी कोई "तुम"
एक-दूसरे को पाएं.. यूं एक-दूसरे में खोकर
थोड़ा अजनबी होकर !!
न सपनों की फेहरिस्त, न पाने की ख्वाहिश
बस "होना" जिएं , संग एक भाव में खोकर
थोड़ा अजनबी होकर !!
थोड़ी मैं अनमनी सी, तुम भी थोड़े सकुचाए
कहो भी अब "मन का", सारा कुछ भूलकर
थोड़ा अजनबी होकर !!
है हाथों में हाथ साथ,अब और क्या चाहिए
हम-तुम हैं सबसे पास,हों भले ही दूर होकर
थोड़ा अजनबी होकर !!
चलो, चलें फिर से यूं ही अजनबी रास्तों पर
थोड़ा अजनबी होकर !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश