संदेह

संदेह करना मामूली कार्य नहीं है,

संदेहकर्ता अपनी जगह होता सही है,

इसमें तर्कशक्ति जागृत होने का

गुण छिपा होता है,

समस्या समाधान ही तर्कशक्ति है,

आंख मूंद मान लेना कुतर्क भक्ति है,

तर्क एक अभिव्यक्त क्रिया है,

प्रकृति ने यह शक्ति सबको दिया है,

इसलिए हर उस बात पर संदेह जरूरी है

जिसे बिना जाने, बिना छाने

मानने को कहा जाता है,

मजबूर भीरू लोगों द्वारा

आंख मूंदकर सहा जाता है,

अब वह चाहे धर्म के नाम हो सकता है,

ईश्वर के नाम पर हो सकता है,

तार्किकता से दूर भागने वालों के

मस्तिष्क के लिए

बिना संदेह किये

मान लेना जहर है,

अंधविश्वास और अंधभक्ति ओढ़ लेना

खुद के लिए क़हर है,

तो जहां जरूरी हो, संदेह करें,

और निःसंदेह करें।

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग