जय गनेश देवता

तोर जय होवय गनेश देवता। करहूँ मैंय हा मान-मनौता।।

जिनगी मा सुख तैंय लाए हच। बिगड़े काम ला बनाए हच।।


बिकट दुख मैंय पावत रेहेंव। अपने-अपन नठावत रेहेंव।।

कुलूप छाए रहिसे अँधियारी। किरपा करके करे उजियारी।।


एक दिन करेंव परतिगिया। घर ले जाहूँ गनपति मोरिया।।

रोज पूजा-पाठ, सेवा करहूँ। तोर नाव ला मने-मन सुमरहूँ।।


तोला दाई-ददा जान के लाहूँ। मीठ लड्डू के भोग लगाहूँ।।

धोतिया, बंगाली तोला पहिराहूँ। तोर हाथ-पाँव ला दबाहूँ।।


तोर बंदना ला रात-दिन गाहूँ। नरियर अउ फूल चढ़हाहूँ।।

धूप,दीया अउ अगरबत्ती जलाहूँ। घेरी-बेरी आरती उतारहूँ।।


रहिबे मोर संग दस दिन ले। ओखर बाद चल देबे छोड़ के।।

मंगल, समरिद्धी, मोला देके। गियान के खूब बरसा करदे।।


कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़

जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई।