खाना खाओ धोखा नहीं

चित्रगुप्त के आदेशानुसार नरकलोक के सिपाही एक व्यापारी की आत्मा अपने संग ले नरक की ओर चल पड़े। मार्ग में स्वर्गलोक के सिपाही उसी आत्मा के लिए नरकलोक के सिपाहियों से भिड़ पड़े। झगड़ा इतना बढ़ गया कि मामला यमराज के पास पहुंचा। यमराज ने दोनों पक्षों की बहस सुनी। वे भी धर्म संकट में पड़ गए। अंत में व्यापारी पर ही किसी एक लोक को चुनने का भार छोड़ दिया। इसके लिए व्यापारी को एक दिन नरक और दूसरे दिन स्वर्ग में रहने के उपरांत उसे जो लोक अच्छा लगेगा वहां पर आजीवन रहने की छूट दी।

यमराज के फैसले का पालन करते हुए नरकलोक के सिपाही व्यापारी को सबसे पहले नरकलोक ले गए। भीतर जाते ही उसे उसके पुराने मित्र मिल गए। आश्चर्य की बात तो यह थी कि नरकलोक एक दम भूलोक जैसा था। व्यापारी अपने मित्रों के साथ भूलोक पर जिस तरह से अय्याशी करता था ठीक उसी तरह का वैभव यहां उपलब्ध था। उसने अपने एक दिन रहने का पूरा-पूरा लुत्फ उठाया।

दूसरे दिन व्यापारी को स्वर्गलोक ले जाया गया। वहां पर भी उसके कुछ मित्र जो उससे पहले मरचुके थे, उपलब्ध थे। वहां के वातावरण में मनोरम शांत संगीत, दीप-दीप-नैवेद्य की सुगंध, पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन आदि आध्यात्मिक क्रियाकलाप अपनी छाप छोड़ रहे थे। व्यापारी का पूरा दिन पूजा-पाठ में बीता।

दो दिन के बाद व्यापारी को यमराज के समक्ष प्रस्तुत किया गया। अब व्यापारी धर्म संकट में था। दोनों लोकों में उसके मित्र थे। अब वह करें तो क्या करें? अंततः उसने नरकलोक का चुनाव किया। उसे इस बात की अत्यंत प्रसन्नता थी कि भूलोक और नरकलोक में कोई अंतर नहीं है। भूलोक पर जैसा जीवन व्यतीत करता था उसी तरह का जीवनयहां व्यतीत करने का उसे सुअवसर मिला।

अगले दिन व्यापारी की इच्छा अनुसार उसे नरकलोक ले जाया गया। वहां का दृश्य देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई। उसने देखा कि नरक के प्रवेश द्वार पर फूहड़ नाला बह रहा था। कल तक जिन मित्रों ने उसे चमक-धमकदार कपड़ों में हंसते हुए स्वागत किया था आज वही गंदे-मलीन कपड़ों में रो-रोकर उसे जाने के लिए कह रहे थे। 

सिर पर बोझा ढोना, छोटी-सी गलती होने पर नरकलोक के सिपाहियों का पीटना यहां के लिए आम दृश्य लग रहा था। व्यापारी को लगा कि उसके साथ धोखा हुआ है। वह छाती पीट-पीट कर रोने लगा। वह चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा था, "अरे भगवान! यह क्या हुआ? मुझे स्वर्ग में रहने का सुअवसर मिला था, लेकिन मैं तो नरकलोक की झूठी तड़क-भड़क के चक्कर में फंस गया। अब मैं क्या करूं? हाय रे मेरी फूटी किस्मत!" उसने नरकलोक के सिपाहियों से पूछा, “यह तो सरासर मेरे साथ धोखा हुआ है। 

आपने जो नरक कल तक दिखाया था वह तो तडक-भड़कदार थी। सब सुविधाएँ थीं। जबकि आज एक दम विपरीत दृश्य है।” इसके उत्तर में नरकलोक के सिपाहियों ने कहा, “वह तो हम तुम्हें आकर्षित करने के लिए नरकलोक का प्रमोशन कर रहे थे। आजकल बिना प्रमोशन व कैम्पेनिंग के कोई किसी को नहीं चुनता। उसे तो झूठे-झूठे सपने दिखाकर फसाना पड़ता है। तुम उसी प्रमोशन की चकाचौंध में धोखा खा गए।”

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उरतृप्त, मो. नं. 73 8657 8657