हिन्दी है तो हम हैं।

यह दिवास्वप्न नहीं,

एक ज्योति पुंज है,

समस्त संसार में,

अनोखा रंग में रंगा हुआ,

नवीन जोश का उन्नत संस्कार से सना,

अमृत पान का एक अपूर्व कुंज है,

यहां समानता है,

उत्कृष्ट संस्कार है,

अमूल्य धरोहर है,

कृतियां और उसके यश और धन से,

लथपथ सरोवर है,

यहां खुशियों को बांटना आता है,

नवीन जोश और उत्साह से,

खुशियां और आनन्द से,

घर घर को आगे बढ़ाने में,

मददगार बन जाता है।

यह आत्मसम्मान को बढ़ाता है,

शिखर पर पहुंचाने में,

मदद बहुत पहुंचाता है।

यह अपनत्व का भाव है,

सम्पूर्णता और सद्भाव है,

आत्मिक शांति और समृद्धि को,

पाने में कामयाब बनाता है,

हरक्षण हरपल उत्साहित करते हुए,

सफलता हमें दिलाता है।

हिन्दी है तो हम हैं,

तन-मन से लबालब भर,

हमें खुशियां खूब मिलता है,

सात्विक आहार और सुकून देने,

बड़ी वाली ताकत बनकर,

उभरता दिखता है।

आओ हम-सब मिलकर यहां एक,

खुशियां और आनन्द से,

जन-जन को लहलहाते हुए,

खुशहाली का वातावरण बनाएं।

हिन्दी को समृद्ध करने में,

मिलकर खूब जोर लगाए।

डॉ ०अशोक, पटना, बिहार।