हम सुन ही नहीं रहे हैं
किसी जरूरतमंद की चीख,
कब ले पाएंगे हम किसी घटना से सीख,
बिना मतलब कोई चीखता नहीं,
मुसीबत में खड़ा हो जाये
ऐसा कोई दिखता नहीं,
दीन,हीन,मजलूम,बेबस ही
इंसाफ की उम्मीद करता है,
अभिमानी दंभ में रहकर
अहित कर देने की ताक़ीद करता है,
किसी बेबस की चीख
जब गूंजता है नीरव आकाश में,
डाका पड़ जाता है
लोगों की उम्मीदों भरे विश्वास में,
तब हमें उस चीख को
नजरअंदाज नहीं करने चाहिए,
क्योंकि आज किसी और की चीख
कब बदल जाये खुद की चीख में,
फिर इतिहास में बढ़ते जाएंगे
ऐसे लोगों की भीड़
जिन्हें महत्वहीन लगे औरों की चीख,
क्योंकि हर भला इंसान
लेके नहीं घूमता है तीख।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग