तुम्हारी कविताओं में

मैं मांग लेना चाहती हूं

नदियों से

उसके कुछ "वो क्षण"

जिसमें वह देखती है सपनें

बारिश के ,

मैं बारिश सी

घुल जाना चाहती हूं

कण-कण में

ताकि

महसूस करती रहूं

उस अतृप्त प्यास को

जो बनती है कारण

धरती-आसमान के मिलन का !!


मैं जीना चाहती हूं

तुम्हारी सारी की सारी कविताएं 

उसी एहसास के साथ

जब तुम सोच रहे थे इनको

प्रेम की अव्यक्त भाषा में ,

और

ढूंढना चाहती हूं

कोई "एक शब्द"

जो सिर्फ और सिर्फ मेरे ही लिए है ,

सुना है..

बहुत संभालकर रखा है तुमने "इसे"

अपनी कविताओं में !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश