शब्दों कि माला

शब्दों कि बनाकर माला

मुँ पर लगाकर ताला

कलम से लिख डालू जो 

कह न पाऊ किसीसे वो


कागज कलम मेरे साथीं

दिल में कर लेना तुम बस्ती

रहो न अपनी ही तुम मस्ती

डूबेगी एक दिन तेरी कस्ती


भावनाओं को ना समजकर

अपनी हर बार तुम चलाकर

इंसान को समजे हे पत्थर

तुम खुद हीं हो इतने बत्तर


नाज न कर खुद आपनें पर

होना हे एक दिन तुझे मिट्टी

कब, कहाँ, कोन, भेजे चिट्ठी

जलायेंगे तुझे तेरे अपने कभी


कु, कविता चव्हाण, जलगांव, महाराष्ट्र