रौशनी में भी अंघेरे का गुमाँ होता है
मेले में भी अकेला दिल-व-जाँ होता है
इतना पुर सुकून है माहौल लेकिन
सुकून हर दिल में कहां होता है
ठहरी ठहरी सी शै है हर सिम्त लेकिन
ख़याल में एक आतिश फ़शां होता है
सज़ा मिलती है जिस राह पर चलकर
उस राह पर कोई क्यों रवां होता है
तारी होती है खामोशी माहौल पर
आने वाला जब कोई तूफ़ां होता है
वासिफ़ मसूद
कटिहार , बिहार - 854105