दोस्ती का महीना

दोस्ती का आ गया महीना

अब कहाँ होता हे मिलना

बचपन के दिनों लोट आना

याद आया गुजरा जमाना


खिलौनो के साथ होता था

तब हमारा खेलना और

आजकल जज़्बबातो को

खिलौना हे समजा 


जो दिल में बोल पड़ते थे

अब कुछ कह कर न कहते 

दोस्त भी कहा साथ हे देते

अपनी जिंदगी में व्यस्त हो

जाते


ऑनलाइन होकर खामोश रहते

क्या हुआ, कैसे हो,अब न पूछते

किसीको किसकि न यहां हे पड़ी

दोस्तों कि दोस्ती भी कब कि उजड़ी


साथ खाना, घूमना, फिरना

मोज, मस्ती करना, भूल गया

अब हर कोई पल जो बिताया

किसीने किसे क्या हे बहकाया


कु, कविता चव्हाण, जलगांव, महाराष्ट्र