अंग्रेजों के जमाने के बदलेंगे कानून

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय संविधान लागू होने के बावजूद अंग्रेजों के जमाने के दो सदी पुराने कानूनों से आपराधिक न्याय प्रणाली चल रही थी। विधि विशेषज्ञ और देश का बौद्धिक वर्ग उन्हें औपनिवेशिक गुलामी का प्रतीक मान रहा था और इन कानूनों की खामियों को भी लगातार उजागर किया जाता रहा है। केन्द्र की मोदी सरकार ने अब अंग्रेजों के जमाने के कानून खत्म करने का फैसला लिया है। मानसून सत्र के अंतिम दिन गृहमंत्री अमित शाह ने 163 साल पुराने तीन मूलभूत कानूनों में बदलाव के बिल लोकसभा में पेश किए। सबसे बड़ा बदलाव राजद्रोह कानून को लेकर होगा, जिसे नए कानून के स्वरूप में लाया जाएगा। 

1860 में बने इंडियन पीनल कोड की जगह अब भारतीय न्याय संहिता 2023, 1898 में बने सीआरपीसी की जगह अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 में बने इंडियन एविडैंस कोड की जगह अब भारतीय साक्ष्य संहिता बिल लाए जाएंगे। फिलहाल यह तीनों विधेयक अब संसदीय समिति के पास समीक्षा के लिए भेज दिए गए हैं। पुराने कानूनों को खत्म करने की दिशा में सबसे ज्यादा चर्चा राजद्रोह कानून की रही है। 

इस कानून का जितना दुरुपयोग किया गया है, उसके चलते इसे खत्म करने की मांग काफी अरसे से की जा रही थी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस कानून का ज्यादातर इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ ही किया गया है। 2010 से लेकर 2022 तक अब तक 13000 लोग इस कानून के तहत गिरफ्तार किये जा चुके हैं। जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो उसने राजद्रोह कानून के प्रावधानों पर पुनर्विचार होने तक इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। इस फैसले के बाद सरकार ने इस पर विचार किया। इस कानून का शिकार देश की जानी-मानी हस्तियां, पत्रकार, कार्टूनिस्ट, पर्यावरणविद और कुछ छात्र नेता भी हुए। 

अब राजद्रोह की जगह देशद्रोह शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा। अब धारा 150 के तहत राष्ट्र के खिलाफ कोई भी कृत्य बोला हो या घ्लिखा हो या संकेत या तस्वीर या इलैक्ट्रोनिक माध्यम से किया हो तो सात साल से उम्रकैद तक की सजा सम्भव होगी। देश की एकता एवं संप्रभुत्ता कोघ्खतरा पहुंचाना अपराध होगा। अभी आईपीसी की धारा 124ए में राजद्रोह में तीन साल से उम्रकैद तक की सजा होती है।  देखना यह होगा कि नए कानूनों के दुरुपयोग की आशंका को खत्म कैसे किया जाता है। 

निर्दोषों को अपील, दलील या वकील के बिना जेलों में बंद किया जाना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं होता। पूर्व में भी पोटा और यूएपीए जैसे कानूनों का दुरुपयोग होता रहा है। ये कानून भारत में अपराधों के अभियोजन प्रक्रिया की नींव हैं। कौन सा कृत्य अपराध है और उसके लिए क्या सजा होनी चाहिए ये भारतीय दंड संहिता के तहत तय होता है। 

 दंड प्रक्रिया संहिता में गिरफ्तारी, अन्वेषण और मुकद्दमा चलाने की विधि लिखी हुई है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम बताता है कि केस के तथ्यों को कैसे साबित किया जाएगा, बयान कैसे दर्ज होंगे और सबूत पेश की जिम्मेदारी (बर्डन ऑफ प्रूफ) किस पर होगी। गृह मंत्री का कहना है कि ये कानून उपनिवेशवाद की विरासत हैं और इन्हें आज के हालात के अनुकूल बनाया जाएगा। अच्छी बात यह है कि कई अपराधों के घ्लिए सजाएं कड़ी की गई हैं। मसलन गैंग रेप के मामले में सजा को 10 वर्ष से बढ़ाकर 20 साल किया गया है। मॉब लिंचिंग और नाबालिग से रेप पर मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। 

नाम बदलकर यौन संबंध बनाने वालों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी। पहली बार सामुदायिक सेवा को बतौर सजा के शामिल किया जा रहा है। छोटे-मोटे अपराधों के लिए 24 घंटे की सजा या 1000 रुपए जुर्माना या सामुदायिक सेवा करने की सजा हो सकती है। अमेरिका और ब्रिटेन में भी ऐसा कानून है। मुकद्दमों की सुनवाई के लिए समय सीमा भी तय की जा रही है। 

साक्ष्य कानून में अब इलेक्ट्रॉनिक इंफोर्मेशन को शामिल किया गया है। साथ ही गवाह, पीड़ित और आरोपी अब इलेक्ट्रॉनिक तरीके सभी अदालत में पेश हो सकेंगे। परिवर्तनों के साथ चार्जशीट दाखिल करने से लेकर जिरह तक ऑनलाइन ही मुमकिन होगी। नए विधेयक में  फारेंसिक के इस्तेमाल और मुकद्दमे की सुनवाई की टाइमलाइन भी तय कर दी गई है। मिसाल के तौर पर सेशन कोर्ट में किसी केस में जिरह पूरी होने के बाद, तीस दिन के भीतर जजमेंट देना होगा। 

इस डेडलाइन को 60 दिन तक बढ़ाया जा सकता है। इन विधेयकों पर संसदीय समिति विचार करेगी और समिति में शामिल विपक्ष इस पर अपनी राय रखेगा। हो सकता है कि विधेयक के प्रारूपों पर विरोध सामने आए। इसलिए जरूरी है कि सारा कामकाज पारदर्शी तरीके से हो। कुछ लोग प्रस्तावित कानूनों को पुरानी फाइल पर नया कवर बता रहे हैं। इस बात का ध्यान रखना होगा कि दोषियों को सजा मिले लेकिन निर्दोषों को सजा न मिले।