नैनो में अश्रु...

हाथों की मेहंदी वो देखे 

नैनों में अश्रु भर कर, 

मन ही मन जिसको वरे थे 

ना हुआ वो हमसफ़र|

 

हाथों मेहंदी वो देखे नैनों में अश्रु भर कर| 


सिक्के नदियों में उछाले  

बांधे मन्नत के बंधन, 

मंदिर मंदिर शीश झुकाए

छुए नित प्रभु के चरण, 

हँस रहे हमपर ही मेरे 

ये चूड़ी और ये कंगन, 

इतनी पूजा और अर्चन का 

क्या दिए हमको प्रतिफल? 


हाथों की मेहंदी वो देखे,नैनों में अश्रु भर कर,  

हाथों की मेरी यह मेंहदी|


मन से चाहा मन से पूजा 

संग देखें थे  कई सपन,

चंद पलो में सदियां जीते 

छलक रहे अब सिर्फ नयन|

रास कैसे अब है आये 

ये हल्दी और ये उबटन,

लग रहा मुझको ये अब तो 

डस रहे मेरे  यह तन| 


हाथों की मेहंदी वो देखे, नैनों में अश्रु भर कर|


मन ही मन कर दिए थे अर्पण

तुझपे अपना तन और मन, 

मांग मेरी तुम ही भरोगे 

हमने यह खाई कसम, 

उस प्रेम का मेरे मन पर 

चढ़ा हुआ है आवरण| 

अब अलग राहों पे देखो  

बढ़ गए हैं ये कदम|


हाथों की मेहंदी वो देखे नैनों में अश्रु भर कर|


सारी यादों को संजो कर 

पग पड़े दूजे आंगन, 

आ गया अब वह भी पल 

जो जीना था तेरे ही संग, 

अपने दिल की इस व्यथा का

क्या करे कोई वर्णन| 

वो ही समझे इस घड़ी को 

जिसपे ये गुजरा था पल|


हाथों की मेहंदी वो देखे 

नैनों में अश्रु भर कर| 

मन ही मन जिसको वरे थे 

ना हुआ वो हमसफ़र| 

हाथों की मेहंदी वो देखे नैनों में अश्रु भर कर|


सविता सिंह मीरा 

जमशेदपुर