विपुल नयन में नीर कण,
अवसाद छलके नीलम बन।
मौन अधर जाने क्या कह जाती है,
तुम बिन आँखे शोर मचाती हैं।
मंजुल मुख मुकुर निहारे,
दर्शन दो अब मोहन प्यारे।
पाषाण हृदय,याद मेरी न आती है,
तुम बिन आँखें शोर मचाती हैं...
सदियों से ज्यों पिपासित चातक,
तेरे वियोग-वेदना से उर है आसक्त।
विजन वन में कोकिला अकुलाती है,
तुम बिन आँखें शोर मचाती है...
तममय मेरे जीवन में बिंदु तुम तुहिन के,
तृषित मरुभूमि में झोंके मलयानिल के।
तेरी यादों में राधा रोती और मुस्काती है
तुम बिन आँखें शोर मचाती हैं।
डॉ.रीमा सिन्हा (लखनऊ)