भारत माँ के यदुवंशी सपूत

भारत की आजादी में यादवों की गाथा सुनाता हूँ।

महा पराक्रमी अहीर योद्धाओं को शीश नवाता हूँ।।

हाथों में तलवार, खून सवार, यदुवंशी सेना का वार।

समर शंख फूँक कर, बिगुल बजाया, मचा हाहाकार।।

सबसे पहले अल्गुमुत्थू कोने ने तलवार उठाई थी।

अंग्रेजों को तमिलनाडु से खदेड़ने सेना बनाई थी।।

प्लासी के युद्ध में राजा मोहन लाल ने लोहा लिया।

नवाब सिराजुद्दौला के प्रतिमूर्ति बन बगावत किया।।

हरियाणा के शेर राव गोपाल देव थे सुरमा महाबली।

अकेले तीस गोरों का सर कलम कर मचा दी खलबली।।

शत्रु सेनाओं को चीरते हुए किशन ने घोड़ा दौड़ाया।

मद-मस्त हाथी में सवार फिरंगी काना को मार गिराया।।

अट्ठारह सौ सत्तावन में रंजीत सिंह ने बगावत कर दी।

छल से पकड़ कर अंग्रेजों ने काला पानी की सजा दी।।

अहीर चौबीसी सेना लेकर बराल पहुँची होकर क्रुद्ध।

केसरिया पगड़ी धारण कर मेहताब सिंह ने किया युद्ध।।

महाराजा हरिवंश ने सौ अंग्रेजों का गर्दन धड़ से काटा।

माँ कालिका के मंदिर में क्रांति के बलि स्वरूप चढ़ाया।।

ऐसे कई वीर अहीर योद्धाओं ने अंग्रेजों को मार गिराया।

ब्रिगेडियर हुकुम ने सर्वप्रथम भारत में तिरंगा लहराया।। 

कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़

जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई।