ग़ज़ल :दुनिया को ग़म-ओ-रंज बताया न करेंगे

दुनिया को ग़म-ओ-रंज बताया न करेंगे 

पूछे कोई आकर ये तमन्ना न करेंगे 


उल्फ़त न करेंगे कभी बहका न करेंगे 

जो भूल की हमने वो दुबारा न करेंगे 


करते हैं वहीं काम जो इंसान ये कहते 

ऐसा न करेंगे कभी वैसा न करेंगे 


आतंकी कहे चाहे बदी करने को कितना

बातिल जो नहीं हैं वो लिहाज़ा न करेंगे 


मुल्ज़िम को बरी कर दे अगर देश का कानून 

वो लोग निरंकूश हो क्या क्या न करेंगे 


ग़म-नोश से बेकल है जहाँ पहले ही यारों 

अपना किसी से इफ़्शा ख़ुदाया न करेंगे 


आबाद करेंगे मकाँ पेश-ए-पा तुम्हारे 

कूचे में कभी चाहे तमाशा न करेंगे 


प्रज्ञा देवले ✍️