दुनिया को ग़म-ओ-रंज बताया न करेंगे
पूछे कोई आकर ये तमन्ना न करेंगे
उल्फ़त न करेंगे कभी बहका न करेंगे
जो भूल की हमने वो दुबारा न करेंगे
करते हैं वहीं काम जो इंसान ये कहते
ऐसा न करेंगे कभी वैसा न करेंगे
आतंकी कहे चाहे बदी करने को कितना
बातिल जो नहीं हैं वो लिहाज़ा न करेंगे
मुल्ज़िम को बरी कर दे अगर देश का कानून
वो लोग निरंकूश हो क्या क्या न करेंगे
ग़म-नोश से बेकल है जहाँ पहले ही यारों
अपना किसी से इफ़्शा ख़ुदाया न करेंगे
आबाद करेंगे मकाँ पेश-ए-पा तुम्हारे
कूचे में कभी चाहे तमाशा न करेंगे
प्रज्ञा देवले ✍️