आईआईएम संशोधन बिल

भारतीय प्रबंधन संस्थान संशोधन विधेयक लोकसभा में ध्वनिमत से पारित कर दिया गया है। हालांकि इस बिल को लेकर गर्मागर्म बहस भी छिड़ गई है। इस विधेयक पर हुई संक्षिप्त चर्चा के दौरान विपक्ष ने कई सवाल उठाए। विपक्ष के सवालों का जवाब देते हुए केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने अपने जवाब में विपक्ष की आशंकाओं का निवारण करते हुए स्पष्ट किया कि आईआईएम की स्वायत्तता में सरकार का हस्तक्षेप करने का कोई इरादा नहीं है। 

संस्थानों की प्रबंधन जवाबदेही अब राष्ट्रपति को सौंपी गई है और अकादमिक जवाबदेही संस्थानों के पास ही रहेगी। भारत के राष्ट्रपति पहले ही आईआईटी, एनआईटी सहित अन्य सभी शीर्ष संस्थानों के विजटर हैं और आज तक इस पर कोई सवाल नहीं उठा है तो फिर अब सवाल उठाना अर्थहीन है। आईआईएम को राष्ट्रपति महत्व का संस्थान घोषित किया गया है। पारित किए गए विधेयक में राष्ट्रपति को न केवल प्रत्येक आईआईएम के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष नियुक्त करने की शक्ति मिल गई है, बल्कि इन संस्थानों के निदेशक नियुक्त करने के साथ-साथ उन्हें हटाने की शक्ति भी दी गई है। 

गवर्नर्स (बीओजी) आईआईएम का सबसे बड़ा कार्यकारी है। यह संस्थानों के कामकाज को कंट्रोल करता है। अध्यक्ष के अलावा इसमें केन्द्र सरकार का एक नामित व्यक्ति और सम्बन्धित राज्य सरकारों का एक नामित व्यक्ति शामिल होता है। आईआईएम एक्ट 2017 के तहत बीओजी के पास उद्योग, शिक्षा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, प्रबंधन, सार्वजनिक प्रशासन या अन्य क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्ति को अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करने की शक्ति थी। 

अब विधेयक में विजिटर को आईआईएम के निदेशक की नियुक्ति में अंतिम निर्णय का अधिकार भी देता है। यह 2017 एक्ट की तुलना में एक बड़ा बदलाव है। हालांकि, बीओजी के मुखिया की अध्यक्षता वाली चयन समिति अभी भी वहीं रहेगी लेकिन संशोधित विधेयक में निदेशक की नियुक्ति विजिटर की अनुमति मिलने के बाद बीओजी द्वारा की जाएगी। एक अन्य बड़े बदलाव में संशोधित विधेयक ने आईआईएम एक्ट की धारा 17 को हटा दिया है। 

जो आवश्यकता पड़ने पर बोर्ड आईआईएम के कामकाज में जांच शुरू करने की शक्ति देता था। यह जांच हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त जज को करनी होगी, जिसके आधार पर बोर्ड फैसला लेगा। संशोधित विधेयक में भारत के राष्ट्रपति को आईआईएम के काम की समीक्षा करने और बाद में आवश्यकता पड़ने पर कार्रवाई करने की शक्ति भी दी गई है। बिल में लिखा है, “विजिटर किसी भी संस्थान के काम और प्रगति की समीक्षा करने तथा उसके मामलों की जांच करने और उस पर रिपोर्ट करने के लिए एक या एक से अधिक व्यक्तियों को नियुक्त कर सकता है, या फिर इसके लिए आदेश दे सकता है।

आईआईएम से जुड़े रहे पूर्व निदेशकों का कहना है कि आईआईएम एक्ट में संशोधन खतरे की घंटी है। इससे संस्थान की स्वायत्तता खतरे में पड़ जाएगी। शिक्षाविदों का कहना है कि अभी तक तो सरकार ने केवल निदेशक और अध्यक्ष की नियुक्ति का अधिकार ही अपने हाथ में लिया है। अगर कल बोर्ड के कामकाज के बारे में अधिक शिकायतें सरकार के पास जाती हैं तो इसमें ज्यादा संशोधन किए जाएंगे जिससे संस्थान की आजादी ही खतरे में पड़ जाएगी।

 दूसरा पहलू यह भी है कि संस्थानों की स्वायत्तता हमेशा दो धारी तलवार की तरह रही है। जवाबदेही के बिना स्वायत्तता कई बार लापरवाह फैसलों की ओर ले जाती है। बीओजी संस्थानों की गिरती रैंकिंग के बारे में चर्चा नहीं करता। ऐसी स्वायत्तता का क्या लाभ जब संस्थानों में सुधार के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाता। यदि प्रबंधन कौशल और प्रशासनिक अनुभव वाले निदेशकों की नियुक्ति करता है तो आईआईएम सुधारात्मक दिशा में जा सकते हैं। 

सरकार का कहना है कि 2017 में आईआईएम अधिनियम के तहत केंद्र सरकार ने संस्थानों को विभिन्न पाठ्यक्रमों के लिए डिग्री देने का अधिकार दिया था। क्योंकि तब तक ये संस्थान केवल डिप्लोमा और सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम ही प्रदान कर सकते थे। हालांकि, पिछले चार वर्षों में स्थानीय प्रबंधन बोर्ड ने पाया कि आईआईएम ने शिक्षकों की नियुक्ति के दौरान पिछड़ी श्रेणियों के लिए आरक्षण प्रदान करने जैसे कई संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं किया। 

इसमें को कोई संदेह नहीं कि संशोधन निश्चित रूप से बड़े बदलाव हैं जिसमें बोर्ड की जवाबदेही तय की गई है। संशोधन बोर्ड को सरकार सहित हितधारकों के प्रति सीधे जवाबदेह बनाने के लिए सरकार का इरादा संस्थानों के प्रबंधन में सुधार करना है। उम्मीद हैै कि सारा कामकाज समन्वय से होगा और संस्थानों की गुणवत्ता में सुधार होगा।