तिरंगे का इतिहास गौरवशाली

                        देश में आजादी की अमृत महोत्सव का जश्न है। हर तरफ तिरंगा फहराता दिख रहा है। इस स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगे की ही सबसे ज्यादा चर्चा है। स्वतंत्रता दिवस सिर्फ एक दिन नहीं हैं। इस दिन से करोड़ों लोगों की भावनाएं जुड़ी होती हैं। इस दिन लोगों के मन में एक उमंग भरी होती है। वहीं, देश की सड़कों पर जोश और उत्साह गूंज रहा होता है। तिरंगे का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। इस झंडे की शान के लिए लाखों शहीदों ने अपने प्राण न्योछावर किए हैं। 

 भारत के नेता के रूप में, खिलाड़ी के रूप में या फिर सरहदों पर खड़े जवानों के रूप में उसके लिए उसकी राष्ट्रीय पहचान तिरंगा होता है। भारत के राष्ट्रीय ध्वज को तिरंगा भी कहते हैं। तीन रंग की क्षैतिज पट्टियों के बीच नीले रंग के एक चक्र द्वारा सुशोभित ध्वज है। पहला भारतीय राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त, 1906 को कोलकाता के पारसी बागान स्क्वायर में फहराया गया था। ध्वज के तीन प्रमुख रंग थे जैसे लाल, पीला और हरा। दूसरा झंडा 1907 में पेरिस में भीकाजी कामा और निर्वासित क्रांतिकारियों के उनके बैंड द्वारा फहराया गया था। झंडे को बर्लिन में एक समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था। तीसरा संशोधित झंडा 1917 में होम रूल आंदोलन के दौरान डॉ एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक द्वारा फहराया गया था। इस ध्वज में पांच लाल और चार हरी क्षैतिज पट्टियां वैकल्पिक रूप से व्यवस्थित थीं, जिन पर सप्तऋषि विन्यास में सात सितारे सुपर-लगाए गए थे।

               1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में हुई अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान, आंध्र के एक युवक पिंगली वेंकय्या ने संशोधित झंडा गांधीजी को भेंट किया। गांधीजी ने एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का प्रतीक चरखा जोड़ने का सुझाव दिया। वर्तमान भारतीय तिरंगे के करीब पहला संस्करण 1921 में पिंगली वेंकय्या द्वारा डिजाइन किया गया था। इसके दो प्रमुख रंग थे- लाल और हरा।

              1931 में, तिरंगे झंडे को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाते हुए एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया गया था। यह ध्वज भारतीय राष्ट्रीय सेना का युद्ध चिन्ह भी था। यह ध्वज, वर्तमान ध्वज का अग्रभाग, केसरिया, सफेद और हरे रंग का था जिसके केंद्र में महात्मा गांधी का चरखा था। हालाँकि, यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि इसका कोई सांप्रदायिक महत्व नहीं था। प्रत्येक स्वटतंत्र राष्ट्र  का अपना एक ध्वज होता है। यह एक स्वतंत्र देश होने का संकेत है। भारतीय तिरंगा को आधिकारिक तौर पर 22 जुलाई, 1947 को अपनाया गया था। इसे पहली बार 15 अगस्त, 1947 को फहराया गया था। 

                    आजादी से पहले भारत का कोई राष्ट्रीय ध्वज नहीं था। ब्रितानी हुकूमत तब भारत में यूनियन जैक फहराया करती थी। हालांकि 2300 साल पहले मौर्य साम्राज्य ने लगभग पूरे भारत पर अधिकार कर लिया था लेकिन तब भी भारत का कोई राष्ट्रीय ध्वज नहीं था। जब 17वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य ने भी भारत के अधिकांश हिस्से पर अपना प्रभाव जमा लिया था। उस वक्त भी भारत का कोई राष्ट्रीय ध्वज नहीं था। आजादी से पहले भारत में 562 से ज्यादा रियासतें थीं। इन सभी रियासतों के भी अलग-अलग झंडे थे। 1906 से अब तक 6 बार राष्ट्रीय ध्वज का स्वरूप बदल चुका है।

                 भारतीय राष्ट्रीकय ध्वथज में तीन रंग की क्षैतिज पट्टियां हैं, सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी और ये तीनों समानुपात में हैं। झंडे की चौड़ाई और लंबाई 2:3 होता है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है। यह चक्र अशोक की राजधानी के सारनाथ के शेर के स्तंभ पर बना हुआ है। इसका व्यास लगभग सफेद पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है। तिरंगे में तीन रंग होते हैं जिनमें शीर्ष पर केसरिया शामिल होता है जो देश की ताकत और साहस को दर्शाता है। केंद्र में सफेद शांति और सच्चाई का प्रतीक है। नीचे का हरा रंग भूमि की उर्वरता, वृद्धि और शुभता को दर्शाता है। अशोक चक्र जिसे धर्म चक्र भी कहा जाता है, केंद्र में रखा गया है और इसमें 24 तीलियां हैं। इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु। है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी रंग और उनका महत्व वही बना रहा। 

 डॉ. नन्दकिशोर साह

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