जिंदगी आ जरा, ये तो बता..
गुजरते हुए, हर जगह..क्यों तू अपने निशान करती है !!
शिकवें, शिकायत हैं..सारी तुझसे ही ,
जो इश्क़ में हैं, क्यों उनका भी जीना मुहाल करती है !!
भले ही न लिखा हो एक भी खत ,
सारे हरफों की तहरीरें, अब भी तेरा ही इंतजार करती हैं !!
ये बात और है कि मिलें न मिलें हम ,
सब निशांनियां, अब भी वक्त से गिले बेशुमार करतीं हैं !!
यूं तो बहुत सी बहारें गुजरी हैं दर से ,
एक न दिखी वो ही, नजरें भी अब हजारों सवाल करतीं हैं !!
चाहूं कि कह दूं सब हाल-ए-दिल ,
करूं क्या, मेरे अल्फाजों की मजबूरियां बेजुबान करती है !!
गुलिस्तां के हर एक फूल से दोस्ती कर ली ,
बाकी है कहीं कुछ तो, जिससे अभी पहचान करनी है !!
क्या कहूं कि ये समां है कैसा
जुबां ये कुछ नहीं कहती, ये धड़कनें ही बवाल करतीं हैं !!
न कहना कभी कि उम्र बीत गयी
बीती खुशबुएं, फूलों से अब भी रिश्तें तलाश करतीं हैं !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश