नारी हिंसा।

कुछ ज़मीर तो बोले,

अवला नारी के साथ होले,

यह एक चित्कार है,

दरिंदगी का एक कुत्सित हथियार है,

समाज आज़ तुम्हें जगना होगा,

इन दरिंदो से लड़ना होगा,

यह पैशाचिक व्यवहार है,

सदियों से चली आ रही भिन्न-भिन्न रंग में,

पर सबमें एक ही अनाचार का सत्कार है,

हमें सम्हलकर रहने की जरूरत है,

नारी चौपाल में जन जन को,

तुरन्त जोड़ने की बढ़ रही अहमियत है,

यह वैचारिक मतभेद का प्रमाण है,

इसे दूर करना नहीं आसान है,

यह एक बदरंग दुनिया की तस्वीर है,

मजबूती से कर रहीं हमें मजबूर है,

यह जीवन की आभा और शोभा है,

इसके महत्व को समझते हुए,

बढ़ानी होगी इसकी आवोहवा है।

यह सामाजिक समरसता बनाने में ,

बदरंग दुनिया की तस्वीर दिखाती है ,

सुसंस्कृत और सुदृढ़ व्यवस्था पर,

बड़ा प्रश्नचिन्ह उठाकर हमें,

जागृत करने की भरपूर कोशिश,

करने में लग जातीं हैं।

डॉ० अशोक, पटना, बिहार।