औरत , हंसकर सब झेलती है
क्या बुरा है जो वो घर से निकल
कभी अपने लिए समय खोजती है ।।।
रह जाएंगे सारे नज़ारे यही ,
एक दिन वो रुकसत हो जाएगी
चार दिवारी से अदविदा हो जाएगी।।
तो ,जी लेने दो उसे भी थोड़ा सा ,
उड़ने दो उसको भी तुम जरा सा
झूट पाकर जरा खुश हो जाएगी।।
न दो ताने किसी भी बात को लेकर
कम,ज्यादा हो जो कुछ भी कही ,
सब तुम्हें ही तो वो देकर जाएगी।।
कहा रखती हैं कुछ भी आपने लिए,
अपने हिस्से का चमन भी सहेजकर
एक दिन तुम्हारे ही लिए छोड़ जाएगी ।।
©® आशी प्रतिभा दुबे (भारत)
मध्य प्रदेश ग्वालियर