पितर पक्ष आया है जब से, घर घर सभी मनाते हैं।
बड़ा खीर अरु सब्जी पूड़ी, मन भर के सब खाते हैं।।
मात-पिता जीवित थे जब तो, पानी नहीं पिलाते थे।
पास बैठने को कहते थे, दूर दूर तुम जाते थे।।
त्याग दिये हैं देह यहाँ से, मिले आज वे माटी में।
नजर देखने को तरसे अब, दिखे नहीं परिपाटी में।।
माह पितर आया है जब से, नदिया पोखर जाते हैं।
अक्षत जौं हाथों में लेकर, पानी देकर आते हैं।।
हलुवा पूरी खाते थे तुम, माँ को भी तरसाते थे।
भूखी बैठी रोती रहती, तरस नहीं दिखलाते थे।।
श्राद्ध पक्ष में मानव तुम तो, ब्राह्मण भोज कराते हो।
रखे आज तस्वीर सामने, छप्पन भोग लगाते हो।।
किसे दिखावा करते मानव, समय तुम्हारा आयेगा।
देख रहे हैं ऊपर वाले, बेटा भी तरसायेगा।।
कर्म करोगे जैसे तुम जी, वैसे फल को पाओगे।
बोया तूने तरु बबूल का, आम कहाँ से खाओगे।।
रचनाकार
प्रिया देवांगन "प्रियू"
राजिम
जिला - गरियाबंद
छत्तीसगढ़
Priyadewangan1997@gmail.com