मृदु धवल,क्लिष्ट सरल शैली अशेष है,
हिंदी है परिष्कृत बोली,कई भाषाओं का समावेश है।
संस्कृत इसकी उद्गम स्थली,वेद पुराण की सहेली ,
आखर आखर प्रेमबद्ध, एकता विशेष है।
राजभाषा यह हमारी ,है हमें जान से प्यारी,
विविधता की आलय है,संस्कृति की धरोहर शेष है।
कविता ,कहानी,दोहा,छंद,मुहावरे,लोकोक्ति व्याकरण बद्ध,
हर विधा की जननी,अनमोल,कितनी विशेष है।
12 राज्यों की मुख्य भाषा,11 की है द्वितीय भाषा,
राह निहार रही अपलक क्यों बनी ना यह राष्ट्रभाषा?
हर मोड़ पर दिया है साथ,यह सकल सार्थक अनिमेष है।
हिंदी दिवस तक क्यों सिमट गई?
अंग्रेजी की दासता में जकड़ गयी।
अपने ही घर में आज हुई पराई,
असीमित शब्दावली थी कभी रह गयी अवशेष है।
सीखो अनेक भाषाएँ,पर हिंदी को दो प्रथम स्थान,
है हमारी संस्कृति की यह जननी,सुमंगल, रितेश है।
क्यों हिन्दी में बोलना समझते अपमान?
क्यों अंग्रेजी को बना दिया महान?
मत भूलो अपने ही काम सदा हैं आते,
विदेशी क्षणिक मोह, फिर क्लेश है।
चाहते हो अगर एक सूत्र में बंधना,
वसुधैव कटुम्बकम को आत्मसात करना,
तो दिल से अपनाओ अपनी हिन्दी,
यही सहचर और यही नितेश है।
रीमा सिन्हा
लखनऊ-उत्तर प्रदेश