धरती की वंदना

जीवन भर गाते सभी,धरती के ही गीत।

हरियाली को रोपकर,बन जाएँ सद् मीत।।


धरती के हैं लाल हम,माँ का रखें ख़याल।

वरना कुछ लोभी मनुज,कर देंगे बेहाल।।


धरती तो है झूलना,माँ की गोद समान।

हरियाली को रोपकर,दें इसको सम्मान।।


हरियाली से सब सुखद,हो जीवन अभिराम।

पेड़ों से साँसें मिलें,विकसित नव आयाम।।


धरती माता पालती,संतति हमको जान।

धरती माता के लिए,बेहद है सम्मान।।


अवनि लुटाती नेह नित,करुणा का प्रतिरूप।

इसकी पावन गोद में,सूरज जैसी धूप।।


धरती का संसार तो,बाँटे सुख हर हाल।

हवा,नीर,भोजन,दुआ,पा हम मालामाल।।


धरा-गोद में बैठकर,होते सभी निहाल।

मैदां,गिरि,जंगल सघन,सुख को करें बहाल।।


धरती मेरे देश की,शस्य श्यामला ख़ूब।

हम सबको आनंद है,बिछी हुई है दूब।।


धरती का सौंदर्य लख,मन में जागे आस।

अंतर में उल्लास है,नित नेहिल अहसास।।


धरती माँ करुणामयी,बनी हुई वरदान।

नित हम पर करती दया,देती है अनुदान।।


धरा आज प्रमुदित हुई,करती हम पर नाज़।

पेड़ों का रोपण किया,हुई सुखद आवाज़।।


गाती रोज़ वसुंधरा,हरियाली के गीत।

जब साँसें सबको मिलें,होगी तब ही जीत।।


वसुधा का है नेह यह,जो देती है अन्न।

वरना हम रहते सदा,भूखे और विपन्न।।


धरती मेरे देश की,जननी का है रूप।

सागर,पर्वत,नद-नदी,खड़ा हिमालय भूप।।


        --प्रो0(डॉ0)शरद नारायण खरे

                       प्राचार्य

शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय