तो रहने दो कागज़ कोरा ही..

अगर नहीं लिख सके हो अब तक

सारी व्यथाएं

इस पीड़ित मन की

जो चूकी रही कहे जाने से ,

अगर नहीं लिख सके हो अब तक 

दर्द ठहरे आंसुओं का ,

अगर नहीं लिख सके हो अब तक

बारिशों का

यूं लगातार घटे जाना ,

अगर नहीं लिख सके हो अब तक

चिड़ियों की स्वछंद उड़ानें ,

अगर नहीं लिख सके हो अब तक

प्रेमियों की विजित कथाएं ,

तो रहने दो ये कागज़ कोरा ही

और आमंत्रण दो

आगामी सभ्यताओं को

कि वो जी भर हंसे,, जी भर खिलखिलाएं

जी भर लिखें

अपनी-अपनी धूप के किस्से,,अपनी-अपनी बारिशों के गान !!

नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश