कच्चे धागे

बचपन से देखा है इन कच्चे धागों को एक मज़बूत डोर बनाते हुए।

कभी मासूम दिलों के सपने बुनते हुए, कभी गरीब की रोज़ी चलाते हुए।।


इन कच्चे धागों ने कई रिश्तों का मान बांधे रखा है।

कभी विवाह के कलावे बनकर, कभी भाई की कलाई पर सज कर।।


मां'ओ की मन्नतो का सम्मान, हर शुभ काम को संपन्न करने की ज़िम्मेदारी।

इन कच्चे धागों पर ही आती है।।


ये धागे नींव है हर रिश्ते की, जिसको प्रेम और सम्मान से बुना जाता है।

आदर सत्कार से और मज़बूत किया जाता है।।


कितनी ही आस बंधी होती है इन कच्चे धागों से।

की अगर भाई की कलाई सूनी रह जाए तो दिल रो उठता है।।


कितना तुच्छ सा अस्तित्व रखने वाले ये कच्चे धागे।

इंसानियत की आत्मा को बुनते हैं।।


© राधिका सोलंकी गाज़ियाबाद